अब तुम्हारी बारी है 

01-09-2024

अब तुम्हारी बारी है 

अवनीश कश्यप (अंक: 260, सितम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

अब हुआ बहुत बदहाल लता, 
मत माँग मदद, मत माँग कवच, 
तू ही भद्रकाली है, 
उठा खड्ग, मत माँग न्याय, 
ख़ून से खेल, 
अब तुम्हारी बारी है। 
 
न अब कान्हा हैं, न श्रीराम, 
उम्मीदें हैं सब मिथ्या, 
वो लगाएँगे कई साल बस
नीति के हवाले देकर, 
मुरझा जाएँगी तब तक कई और कली, 
और आवेगों की आत्मता, 
मत बैठ जा वक़्त की सीढ़ी पर
ऐलान कर सर-ए-'आम, 
तू एक बन, क़त्लेआम कर, 
अब तुम्हारी बारी है। 
 
दीये कब तक जलेंगे, 
फूल कब तक और चढ़ेंगे, 
मौन की भीड़ कब रुकेगी, 
आक्रोश, परिणाम में कब बदलेगा, 
मन और माया की बाढ़ है बस, 
इंतेजार की घड़ी कब की ख़त्म हुई, 
तुम अब नरसंहार कर, 
वार कर, प्रहार कर, 
शीशों की माला के संग, 
अपनी नीति का आग़ाज़ कर, 
अब तुम्हारी बारी है। 

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