यह सच है
सुशांत सुप्रियजब मैं छोटा बच्चा था
तब मेरे भीतर एक नदी बहती थी
जिसका पानी उजला
साफ़ और पारदर्शी था
उस नदी में
रंग-बिरंगी मछलियाँ
तैरती थीं
जैसे-जैसे मैं
बड़ा होता गया
मेरे भीतर बहती नदी
मैली होती चली गई
धीरे-धीरे
मैं युवा हो गया
पर मेरे भीतर बहती नदी
अब एक गंदे नाले में
बदल गई थी
उस में मौजूद
सारी मछलियाँ
मर चुकी थीं
उसका पानी अब
बदबूदार हो गया था
जिसमें केवल
बीमारी फैलाने वाले
मच्छर पनपते थे
यह दुनिया की
ज़्यादातर नदियों
की व्यथा है
यह दुनिया के
ज़्यादातर लोगों की
की कथा है
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