श्रमेव जयते

07-12-2014

भाग्य के बैठे भरोसे
नहीं किसी ने दिन सुधारे।
सीढ़ियाँ चढनी पड़ेंगी
देखने को गगन तारे।

पालनी होगी हमें ज़िद
लक्ष्य पाने को हमारे।
काम कम आते अपेक्षित
दूसरों के बल सहारे।

की देरी साधने श्रम
तन व मन श्रम हीन होगा।
बाँध मुट्ठी, बन प्रहारी
काम स्वप्नों से न होगा।

छोड़ आलस; मत 'हवा में-
पुल' बना, टिकता नहीं है।
कर्म से करना किनारा
'डुबा देते हित' सही है।

ईश्वर भी नहीं देता
आलसी नर को सहारे।
भाग्य के बैठे भरोसे
नहीं किसी ने दिन सुधारे।

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