सँवारना
डॉ. रानी कुमारीहम कितना कुछ
सँवारना चाहती हैं
अपने आसपास
घर, सामान और
अपने आपको भी..
पर क्या हम सँवार पाती हैं
सब कुछ..?
शायद नहीं
एक लड़की तो
सब कुछ सँवारने में
पूरी ज़िंदगी लगा देती है!
अजीब-सी बात यह है
शादी से पहले वह सँवारती है
अपने मायके को
और फिर अपने ससुराल को,
बस इस सँवारने में
ख़ुद को भूल जाती है!
शादी से पहले
पढ़ने को नहीं मिल पाता
घर का एक कोना
और
एक मेज़ कुर्सी
किताबें धरने भर जगह
पर शादी की बात
चलते ही देखे जाते हैं
नए-नए डिज़ाइन के सोफ़ा-सेट
और डाइनिंग टेबल
उसके दहेज़ का सामान
जुटाया जाता है
जतन से...
जहाँ घर का कोना ना मिला
वहाँ आँगन भरा है
उसके सामान से
कुछ गिरवी रख के
कुछ पैसे ब्याज पर लेकर..
लड़की अपनी अगत
तो सँवार नहीं पाती
पर दहेज़ के सामान को
सँभालती है
ज़िंदगी भर...