सज्जनता का दंड
डॉ. वंदना मुकेशराजकुमार को संजू ने फोन कर के बताया कि वह गहरी मुसीबत में है उसे तत्काल एक पंद्रह सौ पाउंड की आवश्यकता है, वरना उसे यहाँ जेल जाना पड़ सकता है। उसने बताया कि मालिक ने किसी को देने के लिये उसे लिफ़ाफ़े में रख कर पैसे सँभलवाए थे। लेकिन ट्यूब में उसकी जेब कट गई। मालिक ने कहा है कि या तो पैसे का इंतज़ाम करो वरना पुलिस . . . कहते-कहते राजू की आवाज़ भर्रा गई।
राजकुमार और संजू दोनों लंदन पढ़ने के लिए साथ ही आये थे। राजकुमार एकदम सकते में आ गया। पंद्रह सौ पाउंड बड़ी रक़म थी। सौ-दो सौ की बात होती तो दे भी देता। पाँच सौ तक का इंतज़ाम भी जान लगाकर कर देता, लेकिन इतनी बड़ी रक़म! . . . लेकिन फिर भी मित्र की समस्या सुनकर वह पसीज गया था। यहाँ उसका और था ही कौन? उसकी आँखों के आगे साथ बिताए सारे पल किसी फ़िल्म की तरह घूम गये। इंतज़ाम तो करना ही था। उसने अपनी अटैची के अस्तर में रखे लिफ़ाफ़े के पैसे गिने। . . . सोलह सौ पाउंड पचहत्तर पेंस। क्या सारा पैसा दे दे उसे? बड़ी कश्मकश के बाद काम ख़त्म कर के वह रात नौ बजे संजू के पास पहुँचा। संजू का गले लग कर बिलख-बिलख कर रोना उसे भीतर तक हिला गया, उसे हिम्मत बँधाते हुए उसने अपनी सारी जमा-पूँजी संजू के हाथ में थमा दी। यह भी कहा कि, "तू चिंता मत कर संजू, जब तेरे पास पैसे जमा हो जाएँ, तू मुझे दे देना या मुझे ज़रूरत होगी तो मैं माँग लूँगा।
पिता के फोन ने राजकुमार को उद्विग्न कर दिया। माँ के कैंसर होने की ख़बर सुनकर उसके पैरों तले ज़मीन ही खिसक गई, माँ से मिलने की तमन्ना उसे बेचैन कर गई। सात साल से वह भारत नहीं जा पाया। छोटे भाई- बहन की पढ़ाई के साथ-साथ, इधर दो-तीन साल से माँ की बीमारी में पैसा इतना लग रहा था कि उसके पास कुछ न बचता।
अब संजू से पैसे लेने का वक़्त आ गया। वैसे भी, पाँच साल बीत गये हैं . . . पंद्रह सौ पाउंड! वह मन ही मन ख़ुश हो गया। उसने संजू को कई फोन लगाए, लेकिन फोन न लगा तो उसे संजू की चिंता हो गई। बेचैनी के कारण वह काम के बाद सीधे उसके घर की ओर निकल गया।
लगभग रात को नौ बजे राजकुमार ने संजू का दरवाज़ा खटखटाया। उसे वह दिन याद आ गया जब वह संजू को जेल से बचाने के लिये पैसे देने उसी तरह रात को पहुँचा था। दरवाज़ा खुला और सामने राजकुमार को देख कर संजू एक पल तो ठिठक गया, लेकिन फिर झट, "राज मेरे यार" कह कर गले लगा लिया। उसे ठीक देख राजकुमार को राहत मिली। खाने के बाद दोनों बैठे।
"माँ को कैंसर हो गया है,” राजकुमार की आवाज़ भर्रा गई।
संजू ने बहुत अफ़सोस जताया।
"मेरे पैसे की अब मुझे सख़्त ज़रूरत है . . . माँ के इलाज के लिये लगेंगे," राज ने कहा।
"एक तो तुम बिना बताए आ गये, अभी कहाँ से दूँ तुम्हारे पैसे?" संजू का स्वर तल्ख़ हो गया था।
“अच्छा . . . तो कितना दे सकोगे अभी?” राजकुमार धीमे स्वर में बोला।
संजू ने हाथ खड़े कर दिये, तीखे स्वर में बोला, “तुम समझते क्यों नहीं मैंने यह फ़्लैट ख़रीद लिया है। इसकी किस्त जाती है, कार की किस्त जाती है, फ्रिज …….##**!!!”
राजू को उसकी सज्जनता दंड मिल चुका था।