परवाज़

देऊ जांगिड़ (अंक: 159, जुलाई प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

करोड़ों की इस दुनिया में हज़ारों ख़्वाब हैं मेरे भी,
दिल के एक कोने में अहसास करती रहती हूँ।


कि कर यक़ीन इश्वर पे, पाने को राह चल पड़ी,
एक परवाज़ की ख़ातिर रातों में जगती रहती हूँ।


बड़े दिलचस्प है लफ़्ज़ फिर भी इनके सफ़र में,
ख़ामोश बैठकर हर पल ख़ुद में खोयी रहती हूँ।


लोगों का अहसान है जो कमियाँ मुझमें निकाल रहे,
उनके तजुर्बे से मैं ख़ुद में सुधार करती रहती हूँ।


देख सूनी सड़कें और ख़ाली बाग़ बग़ीचों को,
इश्वर से विपदा मिटाने की प्रार्थना करती रहती हूँ।


असल दुनिया में अब मैंने पहचान बनानी ठानी है,
एक परवाज़ की ख़ातिर रातों में जगती रहती हूँ।

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