नेपथ्य
गौरव भारतीनेपथ्य का कवि हूँ मैं
अपने अल्फ़ाज़
बुन रहा हूँ
घोंसले की माफ़िक
रोज़ हर रोज़
लड़ते हुए
अनगिनत चरित्रों से
इस छटपटाहट में कि
निकल कर रूबर होऊँ
अपने किरदार के साथ
अपने अंदाज़ के साथ
हो एक लंबा संवाद
मेरे और तुम्हारे साथ
सुनो मुझे देखो मुझे
यह मैं नहीं एक जमात है
जिसकी एक ही कहानी
मेरे पास है
खोल रख रहा हूँ
समक्ष तुम्हारे
मानो उधेड़ रहा हूँ
बुनी हुयी स्वेटर
एक छोर पकड़कर
ज्यों उधेड़ती है स्त्री
समझने के लिए डिज़ाइन
अंत में एक अनुभव
तुम्हारे पास होगा
एक जमात तुम्हारे साथ होगी
मैं शायद नेपथ्य से निकलकर
मंच पर आ जाऊँगा
एक नयी कविता
नए भावबोध
नयी तलाश
नए प्रतिमान
नयी ऊर्जा के साथ
तुम्हारी ही कहानी
अपने अंदाज़ में
कह सुनाऊँगा।