नारीत्व - एक गाली

14-03-2016

नारीत्व - एक गाली

डॉ. प्रतिभा सक्सेना

नारी-जन्म एक गुनाह,
आजीवन-दंड का प्रावधान !
कितना कुछ है दुनिया में
सुख-सुविधा के लिये आदमी के,
जिसमें यह भी एक वस्तु,
शुरू से छँटती-ढलती
उसी के निमित्त,
स्वयं पर लादे निषेधों का विधान!
*
नारीत्व
एक गाली, कुत्साओं भरी
आदमी के मुँह चढ़ी,
अपनी सामर्थ्य
प्रमाणित करने को!
मन की नालियों का बहाव,
उमड़-उमड़ फूट निकलता है,
अपनी कुत्सा औरों पर छींटते!
*
औरत, एक खिलौना
मन बहलाने को,
कमज़ोर माटी का भाँडा -
सारी छूत समेटे .
बस में न रहे, तोड़ फेंको .
अधिकारी हो न,
शक्ति-सामर्थ्य संपन्न तुम!

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