मोहब्बत
विजय कुमार सप्पत्तितुम अपने हाथों की मेहँदी में
मेरा नाम लिखती थी और
मैं अपनी नज़्मों में तुझे पुकारता था जानां;
लेकिन मोहब्बत की बाते अक्सर किताबी होती हैं
जिनके अक्षर
वक़्त की आग में जल जाते हैं
किस्मत की दरिया में बह जाते हैं;
तेरे हाथों की मेंहदी से मेरा नाम मिट गया
लेकिन मुझे तेरी मोहब्बत की क़सम,
मैं अपने नज़्मों से तुझे जाने न दूँगा...
ये मेरी मोहब्बत है जानां !!