मेरा बावरा मन

15-07-2019

मेरा बावरा मन

अनुपमा रस्तोगी

मन तू इतना नटखट क्यों है,
एक बच्चे की तरह 
मचलता क्यूँ है।
कभी लगता है बस 
बहुत कर ली नौकरी,
अब करो आराम नहीं 
करनी किसी की चाकरी।

 

पर दूसरे ही पल वोह 
ऑfiस की मीठी यादें
मीटिंग्स, डिसकशंस और 
टारगेट की बातें ।
देर तक रुक कर इश्यूज़ 
सुलझाने का जूनून,
और सुलझ जाने पर 
वोह बेइंतेहा सुकून।

 

कभी लगता है कि अकेले 
दुनिया घूमने निकल जाऊँ
पर प्यार में पागल मन को 
कैसे समझाऊँ।
जो अधेड़ होने के बाद 
फिर से किशोर हो गया है,
और तुम्हारे इश्क़ में 
मस्ताना हो गया है।
हर सुबह तुम से शुरू 
और हर शाम तुम्हारा इंतज़ार
नहीं आता इसे कहीं 
तुम्हारे बिना करार।

 

फिर लगता है कुछ 
नया करूँ,
क्या, कैसे, कहाँ, 
कब शुरू करूँ।
अगले ही पल सोचती हूँ 
कि थम जाऊँ,
जी लूँ आज में और 
इन पलों में बह जाऊँ।

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