जो कहता था
सुशांत सुप्रियजो कहता था
मेरे पास कुछ नहीं है
असल में उसके पास
सब कुछ था
जो कहता था
मैं पूरब दिशा में
जा रहा हूँ
दरअसल वह
पश्चिम की ओर
जा रहा होता था
जो कहता था
मैं पीता नहीं हूँ
उसी के घर से
शराब की सबसे ज़्यादा
ख़ाली बोतलें निकलती थीं
जो इलाक़े के बच्चों में
सबसे ज़्यादा टाफ़ियाँ बाँटता था
वही पकड़ा गया बच्चों के
यौन-शोषण के आरोप में
जो कहता था
लोकतंत्र में हमारी
गहरी आस्था है
वही बन बैठा
सबसे बड़ा तानाशाह
जो पहनता था
सातों दिन सफ़ेद वस्त्र
उसी का मन
सबसे ज़्यादा काला निकला
जो करता था
सबसे ज़्यादा पूजा-पाठ
जो पहनता था
तीसों दिन गेरुए वस्त्र
जो अपने उपदेशों में
नारी को 'देवी' बताता था
वही पकड़ा गया
एक अबला के
शील-भंग के आरोप में
जो आदमी ख़ुद को
गाँधीजी का सबसे बड़ा
भक्त बताता था
जो दिन-रात
'अहिंसा' का जाप
करता रहता था
अंत में वही हत्यारा निकला
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- 'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
- इधर से ही
- इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं
- ईंट का गीत
- एक जलता हुआ दृश्य
- एक ठहरी हुई उम्र
- एक सजल संवेदना-सी
- किसान का हल
- ग़लती (सुशांत सुप्रिय)
- जब आँख खुली
- जो कहता था
- डरावनी बात
- धन्यवाद-ज्ञापन
- नरोदा पाटिया : गुजरात, 2002
- निमंत्रण
- फ़र्क
- बोलना
- बौड़म दास
- महा-गणित
- माँ
- यह सच है
- लौटना
- विडम्बना
- सुरिंदर मास्टर साहब और पापड़-वड़ियों की दुकान
- स्टिल-बॉर्न बेबी
- हक़ीक़त
- हर बार
- अनूदित कहानी
- कहानी
- विडियो
-
- ऑडियो
-