जब तक चले ये ज़िंदगी चलते रहो

01-01-2020

जब तक चले ये ज़िंदगी चलते रहो

भावना भट्ट (अंक: 147, जनवरी प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

जब तक चले ये ज़िंदगी चलते रहो,
ना हारना तुम हौसला बढ़ते रहो।

 

सूरज ढलेगा तो खिलेगी चांदनी,
नभ के सितारों की तरह खिलते रहो।

 

दामन सदा तुम आस का थामे चलो,
स्वीकार कर सबका सदा हँसते रहो।

 

कई मोड़ आएँगे सफ़र के दरमियाँ
संतुलन रखकर मगर  चलते रहो।

 

आशीष होगा साथ में जब ईश का,
मंज़िल मिलेगी निश्चये बहते रहो।

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