एक जलता हुआ दृश्य
सुशांत सुप्रियवह एक जलता हुआ दृश्य था
वह मध्य-युग था या १९४७
१९८४ था या १९९२
या वह २००२ था
यह ठीक से पता नहीं चलता था
शायद वह प्रागैतिहासिक काल से
अब तक के सभी
जलते हुए दृश्यों का निचोड़ था
उस दृश्य के भीतर
हर भाषा में निरीह लोगों की चीख़ें थीं
हर बोली में अभागे बच्चों का रुदन था
हर लिपि में बिलखती स्त्रियों की असहाय
प्रार्थनाएँ थीं
कुल मिला कर वहाँ
किसी नाज़ी यातना-शिविर की
यंत्रणा में ऐंठता हुआ
सहस्राब्दियों लम्बा हाहाकार था
उस जलते हुए दृश्य के बाहर
प्रगति के विराट भ्रम का
चौंधिया देने वाला उजाला था
जहाँ गगनचुम्बी इमारतें थीं, वायु-यान थे
मेट्रो रेल-गाड़ियाँ थीं, शॉपिंग-मॉल्स थे
और सेंसेक्स की भारी उछाल थी
किंतु जलते हुए दृश्य के भीतर
शोषितों के जले हुए डैने थे
वंचितों के झुलसे हुए सपने थे
गुर्राते हुए जबड़ों में हड्डियाँ थीं
डर कर भागते हुए मसीहा थे
हर युग में टूटते हुए सितारों ने
अपने रुआँसे उजाले में
उस जलते हुए दृश्य को देखा था
असल में वह कोई जलता हुआ दृश्य नहीं था
असल में वह मानव-सभ्यता का
घुप्प अंधकार था
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- 'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
- इधर से ही
- इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं
- ईंट का गीत
- एक जलता हुआ दृश्य
- एक ठहरी हुई उम्र
- एक सजल संवेदना-सी
- किसान का हल
- ग़लती (सुशांत सुप्रिय)
- जब आँख खुली
- जो कहता था
- डरावनी बात
- धन्यवाद-ज्ञापन
- नरोदा पाटिया : गुजरात, 2002
- निमंत्रण
- फ़र्क
- बोलना
- बौड़म दास
- महा-गणित
- माँ
- यह सच है
- लौटना
- विडम्बना
- सुरिंदर मास्टर साहब और पापड़-वड़ियों की दुकान
- स्टिल-बॉर्न बेबी
- हक़ीक़त
- हर बार
- अनूदित कहानी
- कहानी
- विडियो
-
- ऑडियो
-