दिल के लहू में
डॉ. विजय कुमार सुखवानीदिल के लहू में आँखों के पानी में रहते थे
जब हम माँ बाप की निग़हबानी में रहते थे
नये मकानों ने हम सब को तन्हा कर दिया
सब मिल जुल के हवेली पुरानी में रहते थे
माँ बाबा दादा दादी चाचा चाची बुआ
कितने सारे किरदार एक कहानी में रहते थे
कैसी चिंता कैसी बीमारी कहाँ का बुढ़ापा
तमाम उम्र हम लोग सिर्फ़ जवानी में रहते थे
ये कभी तो तन्हा मिले तो इस पर वार करें
सारे दुश्मन हमारे इसी परेशानी में रहते थे
जब तक बड़े बूढ़े सयाने हमारे घरों में रहे
हम लोग बड़े मज़े से नादानी में रहते थे
बड़े होकर किस किस के आगे झुकना पड़ा
जब छोटे थे सब हमारी हुक्मरानी में रहते थे
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