छाँव

डॉ. रानू मुखर्जी (अंक: 185, जुलाई द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

छाँव सुकून देती है।
माँ के आँचल की छाँव 
पिता की छत्र छाया
पर पेड़ की छाँव भी तो सुकून देती है।
अगर सुकून है तो फिर 
कुल्हाड़ी क्यों उठती है?
कटकर गिरता है क्यों?
पहाड़ पर रहने पर भी पेड़
हरे-भरे बने रहते हैं ।
 
ताप सहकर भी शांत 
न बड़ा होने का अहंकार
न रेत पर उगने की शिकायत
आह नहीं अफ़सोस नहीं
दुखी है पेड़ सहायता करने पर भी 
आज सहेजने की किसी को फ़िक्र नहीं।
फिर भी धरा को आच्छादित करने को 
मानव को पोषित करने को 
युग-युगांतर तक पेड़ ऐसे ही 
डटे रहेंगे छाँव देते रहेंगे।

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