आज मैंने भी एक दिया जलाया

01-09-2021

आज मैंने भी एक दिया जलाया

इन्दिरा वर्मा (अंक: 188, सितम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

आज मैंने भी एक दिया जलाया,
देखती रही उसे देर तक!
 
सोचती रही,
सब इसकी लौ में लपेट लूँगी।
और ले जाऊँगी कहीं दूर एक
छोटी सी पोटली में बाँध कर!
 
वही, ज़िन्दगी के सुनहरे लम्हे, 
जो उस दिन –
अलाव पर हाथ सेंकते हुये दिये थे तुमने, 
और देते ही रहे, हैं मेरे पास, आज भी।
 
उन्हीं से सुलगाती रहती हूँ 
वह अनमने से, अकेले से पल, 
जो घने बादलों की भाँति ओढ़ लेते हैं 
मेरी खिड़की से आती हुई 
उस हल्की हल्की गरमाई को!
 
आज मैंने भी एक दिया जलाया!
देखती रही उसे देर तक!

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