सलिल दलाल 

सलिल दलाल 

सलिल दलाल 

नाम: हसमुख ठक्कर 
जन्म: दिसंबर, 1950
शिक्षा: 

  • वडोदरा की एम.एस. यूनिवर्सिटी से कॉमर्स स्नातक

  • केनेडा की लॉ सोसायटी द्वारा लाइसेंस्ड पेरालीगल

  • ओंटारियो की सरकार मान्य संस्था ATIO के पहले और अकेले गुजराती अनुवादक। 

कार्यक्षेत्र:

  • 1973 से गुजरात के आणंद शहर में स्थित जगप्रसिद्ध अमूल डेरी में क़रीब पाँच साल काम किया

  • बाद में गुजरात पब्लिक सर्विस कमिशन की स्पर्धा के मेरिट में राज्यभर में द्वितीय स्थान प्राप्त करके सीधे नायाब तहसीलदार बने

  • अंततः 30 साल के कार्यकाल के बाद 2008 में गुजरात सरकार से डिप्टी कलेक्टर के पद पर निवृत्त हुए। 

लेखन व प्रकाशन:

  • ‘अमूल’ में काम करते समय ही, पढ़ने लिखने के शौक़ के कारण, अपना एक पारिवारिक स्थानिय साप्ताहिक ‘आनंद एक्सप्रेस’ 1974 में शुरू किया। उस की बहुधा सामग्री वे तैयार करते थे। उस में से एक स्तंभ ‘फिलम नी चिलम’ भी था। वह इतना लोकप्रिय हुआ कि 1978 में गुजरात के प्रमुख अख़बार ‘संदेश’ ने उन्हें लिखने का न्यौता दिया। तब सरकारी नौकरी के चलते अपनी लेखनी का नया नाम ‘सलिल दलाल’ किया और आज 45 साल बाद भी उसी नाम से ही दुनियाभर के गुजराती पाठक उन्हें जानते हैं। 

  • ‘संदेश’ में क़रीब 17 साल उनके साप्ताहिक दो कालम आते रहे। उस के बाद वे एक अन्य लोकप्रिय अग्रणी दैनिक ‘गुजरात समाचार’ के नियमित स्तंभकार बने। फिर जब हिन्दी ‘दैनिक भास्कर’ने अपना गुजराती अख़बार ‘दिव्य भास्कर’ शुरू किया तब उस के प्रथम अंक से ही वे जुड़े। साथ ही उनका स्तंभ लेखन ‘मुंबई समाचार’ और गुजराती ‘मीड डे’ जैसे मुंबई के अख़बारों में भी नियमित रूप से चलता रहा। 2016 से वर्तमान में ‘संदेश’ अख़बार की रविवारीय आवृत्ति में उनके लेख हर हफ़्ते प्रसिद्ध होते हैं। 

  • गुजराती सामयिको में भी समय-समय पर ‘अभियान’ और ‘फ़ीलिंग्स’ में निमंत्रण से आर्टिकल लिखे। लेकिन ‘नेटवर्क’, ‘लवस्टोरी’ और ‘आरपार’ मैगज़ींस में अलग-अलग समय पर लंबे अर्से तक नियमित साप्ताहिक आलेख लिखते रहे। 

  • ‘आरपार’ की ही अपनी धारावाहिक शृंखला ‘बायोस्कोप’ में हिन्दी सिनेमा के 9 शायरों के बारे में रोचक ढंग से लिखे लेखों की पुस्तक ‘गाता रहे मेरा दिल’ 2005 में प्रसिद्ध हुई। वह पुस्तक टोरोंटो पब्लिक लायब्रेरी के गुजराती विभाग में सलिल भाई 2008 में स्थायी रूप से कैनेडा रहने आये उस से पहले ही आ चुकी थी। उस में साहिर लुधियानवी, शैलेन्द्र, मजरुह सुलतानपुरी, हसरत जयपुरी, कैफ़ी आज़मी, इन्दीवर, शकील बदायूनी, राजेन्द्र कृष्ण और आनंद बक्षी के जीवन कवन और उनके काव्य-साहित्य की समीक्षा समांतर चलती रहती थी। वह पुस्तक उस वर्ष भारत के राष्ट्रीय पुरस्कारों में ‘बेस्ट बुक ऑन सिनेमा’ की स्पर्धा में भी शामिल थी। उस का दूसरा संस्करण भी अप्राप्य है। 

  • कैनेडा स्थायी होने के बाद दूसरी पुस्तक हिन्दी सिनेमा के पाँच ‘कुमार’ अशोक कुमार, किशोर कुमार, राज कुमार, राजेन्द्र कुमार और संजीव कुमार के बारे में लिखी। उस किताब ‘कुमारकथाओ फेसबुक ना फळिये’ के लेख सोशल मीडिया ‘फ़ेसबुक’ पर लिखे थे और वह पुस्तक भी अप्राप्य है। 

  • टोरोंटो में लिखते हुए उन्होंने, ऐसी पाँच अभिनेत्रियों को चुना जिनका अकस्मात्‌ से या छोटी उम्र में देहांत हुआ था। हिन्दी पर्दे की स्मिता पाटील, मीनाकुमारी, मधुबाला, दिव्या भारती और श्रीदेवी की जीवनी और उनके ‘बॉडी ऑफ़ वर्क’ के समन्वय की पुस्तक ‘अधुरी कथाओ इन्टरनेट नी अटारीए’ प्रकट की। ख़ास बात यह थी कि इस शृंखला के सारे लेख ‘खबर छे डोट कोम’ और ‘दिव्य भास्कर’ अख़बारों की ऑनलाइन एडिशन में छपे थे। 

  • फिर ‘साहित्य कुंज’ के संपादक सुमन घई के संपादन में हिन्दी लेखन शुरू हुआ; राकेश तिवारी जी के ‘हिन्दी टाइम्स’ में ‘सलिल की मेहफ़िल’ स्तंभ द्वारा। उस में लिखी साप्ताहिक शृंखला की पुस्तक ‘सुरसागर की लहरें . . . ’ में 1960 से 1975 के अप्रतिम फ़िल्म संगीत का प्रलेखन करने का निष्ठावन प्रयास है। अत्यंत ख़ूबसूरती से सजाई गई यह पुस्तक भी काफ़ी सराहना प्राप्त कर चुकी है। 

  • ‘साहित्य कुंज’ में वे हर बार लैंड मार्क फ़िल्म का एक गीत लेकर उस के आसपास अपने रोचक ढंग से तानेबाने बुनने वाले हैं। इस समय ब्लड कैंसर से जूझ रहे सलिलजी शुरूआत कुछ उन गुजराती लेखों के अनुवाद से कर रहे हैं, जो उन्होंने 2006-07 के दौरान गुजराती साप्ताहिक ‘विचारधारा’ के लिए लिखे थे।