ज़िंदगी
डॉ. विकास वर्माकुछ अतीत की स्मृतियों के भीगे-से पल,
कुछ भविष्य के सपनों की धुँधली-सी तस्वीरें,
और बस,
सृजनहीन वर्तमान का प्रतिक्षण,
यूँ ही हाथों से फिसलते जाना….
कितना सिमट जाती है ज़िंदगी कभी-कभी!
कुछ अतीत की स्मृतियों के भीगे-से पल,
कुछ भविष्य के सपनों की धुँधली-सी तस्वीरें,
और बस,
सृजनहीन वर्तमान का प्रतिक्षण,
यूँ ही हाथों से फिसलते जाना….
कितना सिमट जाती है ज़िंदगी कभी-कभी!