दूरी के ये पल
डॉ. विकास वर्माकटते नहीं ये पल,
तुमसे दूरी के ये पल,
बना रहे हैं अपाहिज-सा मुझे,
जैसे कर दिया हो जुदा -
मेरे जिस्म के किसी हिस्से को मुझसे।
नहीं, यह उपमा ठीक नहीं, अधूरी है शायद,
तुमसे दूरी का यह एहसास,
नहीं करता अपाहिज महज़ जिस्मानी तौर पर,
कर देता है जुदा जैसे रूह को भी जिस्म से,
और बना देता है जैसे...
रूहानी तौर पर भी अपाहिज,
और अधूरा.....