ज़िन्दगी की परीक्षा
निहारिका चौधरीचाहें खुशियों के पल हों,
या दुःख के बादल क्यों ना छाए हों,
उम्मीद की कोई किरण हो,
या डगमगाता हमारा हौसला हो,
ज़िन्दगी के हर मोड़ पर,
सुख दुःख का -
आना जाना तो लगा ही रहता है,
पर जो ग़म में भी. . .
मुस्कुराना सीख गया हो,
जो अँधेरे में भी
उम्मीद की किरण बन गया हो,
जो हार की चौखट पार करके
अपनी मंज़िल को छू गया हो,
ज़िन्दगी में आए हर मोड़ पर जो
सुख दुःख का साथी बन गया हो,
समझो, ज़िन्दगी की हर परीक्षा में
वो सफल हो गया॥
किसी का घर ख़ुशियों की रोशनी बन
हर पल जगमगाता है,
तो किसी की ज़िन्दगी में
कठिन परिस्थिति का सामना करवाता है,
जहाँ कोई आसमान की उड़ान भर रहा है,
तो कोई धीरे - धीरे ही सही लेकिन. . .
अपनी मंज़िल की ओर बढ़ रहा है,
हार कर बैठने से अच्छा
क्यों ना कोशिश की जाए,
ज़िन्दगी की हर परिक्षा में
क्यों ना सफल हुआ जाए।।
असफल और सफल
दोनों व्यक्तियों को कठिनाई का
सामना करना पड़ता है,
जो लड़ कर जीत कर
बिखरने के बाद भी -
कोशिश करता है,
वही ऊँचाई और बुलंदियों का
सामना कर पाता है॥
ये ज़िन्दगी की परीक्षा
कठिनाइयों के साथ साथ
बहुत कुछ सिखाएगी,
गिर कर सँभलना,
टूटकर बिखरना. . .
अगर चाहत है कुछ पाने की
कुछ कर दिखाने की,
मन में है आशा और जुनून है
कुछ पाने का तो
ज़िन्दगी की परीक्षा ही
हमारी सफलता लाएगी,
अपनी मंज़िल से
यही सामना करवाएगी।