महामारी और जीवन
निहारिका चौधरीवक़्त और हालात
अब साथ नहीं हैं।
इस महामारी में सबका
जीवन मानो थम सा गया है।
इंसान को भी शौक़ था
बेज़ुबानों को क़ैद करने का।
जंगलों को नष्ट कर
अपने स्वार्थ में जीने का।
ना किसी के पास वक़्त था
अपनों के लिए।
बस जीवन जीये जा रहे थे
सिर्फ़ कमाने के लिए।
आज सब
वक़्त से हारे हैं,
इस महामारी की चपेट में
आए एक मुसाफ़िर हैं।
शायद क़ुदरत का
दण्ड है ये,
जो दिए हैं दर्द इंसानों ने
उसका क़ुदरत प्रायश्चित करवाएगी।
इस महामारी में हमको
इंसानियत का एहसास,
और जीवन जीने का
महत्त्व सिखलाएगी।