ज़ख्म दिल के

15-06-2023

ज़ख्म दिल के

हरप्रिया (अंक: 231, जून द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

ज़ख़्म दिल के सँभालूँ कैसे 
हर कोई दर्द देने की फ़रियाद रखता है, 
कि ज़ख़्म दिल के सँभालूँ कैसे 
हर कोई दर्द दिल देने की फ़रियाद रखता है 
अपना हो या ग़ैर हर कोई 
मेरे वुजूद को मिटाने का ख़्वाब रखता है। 
 
सँभला तो नहीं यह दिल किसी से भी 
कि सँभला तो नहीं यह दिल किसी से भी 
पर हर कोई इसे तोड़ने का ख़्याल रखता है
जिए भी तो जिए कैसे हर कोई चोट पर 
नमक घिसने का हथियार रखता है। 
 
चुभती हैं साँसें जब धड़कता है दिल 
कि चुभती है साँसें जब धड़कता है दिल 
क्या करूँ कुछ इस क़द्र दर्द-ए-दिल इश्तेयार रखता है। 
सँभालूँ तो सँभालूँ कैसे इस रिश्ते को, 
कि सँभालूँ तो सँभालूँ कैसे इस रिश्ते को 
यहाँ हर कोई इसे तोड़ने का अरमान रखता है। 
 
थक जाते हैं हम भी लड़ते-लड़ते, 
कि थक जाते हैं हम भी लड़ते-लड़ते 
पर क्या करें यहाँ हर दिन एक नई जंग तैयार रखता है। 
 
ना थी मैं बेचारी ना थी ना थी मैं अबला नारी, 
कि ना थी मैं बेचारी ना थी मैं अबला नारी 
पर फिर भी ना जाने क्यों यह संसार मुझे लाचार रखता है। 
 
अब हर दिन ख़ुद को सँभालूँ कैसे 
कि अब हर दिन ख़ुद को सँभालूँ कैसे 
जहाँ हर रोज़ एक नया ज़ख़्म इंतज़ार करता है। 
 
कहें भी तो कहें कैसे अब बस बहुत हुआ 
कि कहें भी तो कहें कैसे अब बस बहुत हुआ 
जब यहाँ ना कोई अपने ज़ुल्म पर लगाम रखता है। 
 
फिर भी चुप रहते हैं हर एक की बातें सुनकर 
कि फिर भी चुप रहते हैं हर एक की बातें सुनकर 
अब कैसे बताएँ और किस-किस को बताएँ 
कि यह दिल हर रोज़ तिल या तिल के मरने का दर्द रखता है। 
 
उम्मीद भी उनसे करते हैं और मोहब्बत उन से करते हैं 
कि उम्मीद भी उनसे करते हैं और मोहब्बत भी उसे करते हैं
फिर भी न जाने क्यों वो मेरा पक्ष रखने का ना कोई साहस रखता है। 
 
अब उनसे भी बताएँ तो क्या बताएँ 
कि अब उनसे भी बताएँ तो क्या बताएँ 
जब सब जानकर भी वह मुझ पर शक की हर बुनियाद रखता है। 
 
हार चुके हैं हम उनको सब समझाते-समझाते 
कि हार चुके हैं हम उनको सब समझाते-समझाते 
आख़िर सब समझ कर भी वह 
मुझपर अपने सवाल की तलवार रखता है। 
 
बहुत देखा है लोगों को कमी हमारी निकालते-निकालते 
कि बहुत देखा है लोगों को हमारी कमी निकालते-निकालते 
पर अपनी हर कमी को हर कोई नज़रअंदाज़ रखता है। 
 
यूँ ही नहीं बिगड़े हैं जनाब हम 
कि यूँही नहीं बिगड़े हैं जनाब हम 
हमारी हर बुराई पर आख़िर तुम्हारा ही हस्ताक्षर दिखता है। 

चलो अब जाने देते हैं सब उसके हवाले 
कि चलो अब जाने देते हैं सब उसके हवाले 
जिसका हिसाब और कोई नहीं मेरा कृष्ण रखता है। 

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