बेईमान दुनिया
हरप्रिया
आज बहुत हँसी आई
देखकर इस ज़माने में।
कोई कसर न छोड़ी
उन्होंने मेरा घर जलाने में।
जल रहा था संसार
मेरा इस आग में
कसर नहीं कोई छोड़ी
लोगों ने आनंद उठाने में।
परिवार तो सभी के थे
उस मोहल्ले में
किसी ने मौक़ा ना छोड़ा
मेरा घर गिराने में।
जिनके ख़ुद के चरित्र
थे नीलाम हर बाज़ार में
उन्होंने कोई कसर न छोड़ी
कीचड़ मुझ पर उछालने में।
भूल गए वो कि मैं भी
किसीकी बेटी हूँ,
ख़ुद औरत होकर
कोई कसर नहीं छोड़ी उन्होंने
मेरा अस्तित्व मिटाने में।
बहुत अभिमान है उन्हेंं कि
यह दौर आने नहीं देंगे
वह अपनी ज़िन्दगी में
पर समय का पहिया है साहब
नहीं देर लगाता ज़िन्दगी घुमाने में।
सच में यह दुनिया है साहब
कोई कसर नहीं छोड़ती
किसी को बुरा बनाने में।