वक़्त
डॉ. दीप्ति
ये वक़्त बड़ा दग़ाबाज़ साथी है,
हर क़दम पर नया धोखा दे जाता।
पहले राहें आसान, ख़ुशनुमा दिखाता,
फिर मुश्किल रास्तों पर ले जाता।
हर भ्रम में, चक्रव्यूह रचता,
दुखों के जाल में हमें क़ैद करता।
सुखद सपनों की चाह में उलझाकर,
वर्तमान को छीन, भटका देता।
कभी अतीत की याद दिलाता,
तो कभी भविष्य की आस जगाता।
इसी बीच वर्तमान से हमें लूट लेता,
अन्त समय हाथ ख़ाली छोड़ जाता।
यह वक़्त बड़ा दग़ाबाज़ साथी है,
हर क़दम पर हमें छल जाता।
सब कुछ छीनकर एक उम्मीद थमाता,
जीवन की राह में संघर्ष कराता।
कभी-कभी मेहरबान भी दिखता,
तो कभी ज़ालिम का रूप दिखाता।
चक्रव्यूह में बार-बार फँसाता,
विभिन्न लड़ाइयों से लड़वाता।
काश बीता हुआ वक़्त वापस लौट आता,
कुछ कड़वी यादों को मीठा कर जाता।
छूटे रिश्तों को फिर से जोड़ता,
पछतावे को मिटाकर सुकून देता।
मगर वक़्त तो अपनी चाल चलता जाता,
हर ग़लती का सबक़ देकर हमें सिखाता।
ये वक़्त बड़ा दग़ाबाज़ साथी है,
हर क़दम पर हमें धोखा दे जाता।