व्यथा
सत्येन्द्र सिंह चाहर
दिल के काग़ज़ पर लिखी,
वह एक पुरानी पाती है।
नाम चाहे जो कह लो, पूजा,
ज़िन्दगी या स्वाति है॥
रेत के घरौंदो पर जब भी
उकेरता हूँ चित्र कोई।
जाने क्यूँ जाने अनजाने
उसकी तस्वीर उभर आती है॥
सोचा था कभी जीवन भर,
यूँ ही साथ रहेगा हमारा।
लेकिन नियति की मंज़ूरी से,
आँख मेरी भर आती है॥
नये समय की रौनक़ में वो
सब याराना भूल गये।
हर किसी की नईं हैं राहें,
राहें निभा न पाती है॥
जब कभी यादें अपने
गुज़रे पलों की आती हैं॥
हाल बयाँ क्या करूँ मैं,
यारो जान सी मेरी जाती है॥