व्यस्तता

07-09-2016

व्यस्तता

सरिता गुप्ता

अपने अंदर के ख़ालीपन को भरने के लिए, 
आस पास बहुत भीड़ जमा कर रखी है, 
कुछ साज़ो-समान है, कुछ लोग हैं, कुछ शौक़ हैं
और कहने को कुछ ज़रूरी काम हैं। 
 
जोड़ लिया है ख़ुद को काग़ज़ से, रेशम से
बेतार से और बेवजह के प्यार से, 
कोई न कोई चाह बाक़ी है पूरी करने को, 
गिने चुने पल और बहुत सारी भाग दौड़
बस एक पल ही नहीं है ठहरने को। 
 
व्यस्तता कल ओढ़ ली, थी ज़रूरत या शौक़ थी, 
किन्तु आज यह मजबूरी व्यसन हो गयी है, 
सुविधा के पीछे भागने में नींद कहीं खो गयी है, 
थकी पलकों में जागे-जागे उम्मीदें अब सो गयी हैं। 
 
नींद में भी जागते हैं, जागी आँखों में सो रहे हैं
कुछ अपनों को कुछ सपनों को संग अब तक ढो रहे हैं
 
एक ख़ुशफ़हमी-सी है कि ख़ुश हूँ
हम पास हैं, सब साथ हैं, एक घनीभूत एहसास है
 
एक पल में एक छोटी सी घटना जगा जाती है
अगले ही क्षण सत्य उद्घाटित हो जाता है
सारा कोलाहल शांत हो जाता है
अंदर का सन्नाटा बाहर पसर जाता है। 

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