विवेकानंद के सपनों की ओर बढ़ता भारत
डॉ. संतोष गौड़ 'राष्ट्रप्रेमी'
विवेकानंद जयंती पर विशेष
स्वामी विवेकानंद के सपनों का भारत एक आदर्श राष्ट्र की कल्पना मात्र नहीं है, बल्कि एक वास्तविकता है, जिसे हमें हासिल करना है और हम करके रहेंगे। हम ऐसे राष्ट्र का विकास करने पर काम कर रहे हैं, जहाँ आध्यात्मिकता, शिक्षा और सामाजिक सुधार की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। उनके विचारों और आदर्शों से प्रेरित होकर, हम एक ऐसे भारत के लक्ष्य पर काम कर रहे हैं जो समृद्ध, शक्तिशाली और आत्मनिर्भर होगा। स्वामी विवेकानंद ने उस समय जो सपने देखे थे, आज का भारत उन्हें पूरा करने में लगा हुआ है। विकसित भारत के लक्ष्य के लिए हमने 2047 की समय सीमा भी तय की हुई है। आज हम केवल आध्यात्मिक ही नहीं, सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ रहे हैं। यह केवल सरकार या प्रधानमंत्री जी का भारत नहीं है। हम सबका भारत है और हम सबको अपनी-अपनी भूमिका का सफलता पूर्वक निर्वहन करते हुए स्वामी विवेकानंद के सपनों को पूरा करना है और हम कर रहे हैं।
स्वामी विवेकानंद केवल आध्यात्मिक विकास ही नहीं चाहते थे। वे समान रूप से भौतिक विकास के लिए भी प्रयासरत रहे। भौतिकता, आध्यात्मिकता और नैतिकता स्वामी विवेकानंद के सपनों के भारत का आधार है। जहाँ आध्यात्मिकता, शिक्षा और सामाजिक सुधार की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है, वहीं हम भौतिक विकास की सीढ़ियाँ भी चढ़ रहे हैं। स्वामी जी के विचारों और आदर्शों से प्रेरित होकर, हम समृद्ध, शक्तिशाली और आत्मनिर्भर भारत के लिए निरंतर कार्य कर रहे हैं। हम अपने लिए काम नहीं करते राष्ट्र के लिए काम करते हैं, क्योंकि हम भली प्रकार जानते हैं कि राष्ट्र का विकास ही हमारा और परिवार का विकास है। समष्टि का विकास ही व्यष्टि का विकास भी है। कहावत भी है, “हाथी के पाँव में सबका पाँव।”
स्वामी विवेकानंद ने आध्यात्मिकता और नैतिकता के महत्त्व पर बल अवश्य दिया किन्तु उनका मानना था कि व्यक्ति और समाज के विकास के लिए भौतिक विकास भी आवश्यक है। भूखे व्यक्ति को धर्म से पहले रोटी की आवश्यकता है। स्वामी विवेकानंद ने शिक्षा और ज्ञान के महत्त्व पर ज़ोर दिया। उनका मानना था कि शिक्षा व्यक्ति और समाज के विकास के लिए आवश्यक है। स्वामी विवेकानंद ने सामाजिक कुरीतियों को समाज के विकास के लिए बाधक माना और सुधार के लिए काम किया। उन्होंने नारी, दलितों और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए काम किया और समाज में समानता और न्याय की वकालत की। राष्ट्र के विकास में सभी पक्षों का योगदान सुनिश्चित करने के लिए सभी पक्षों का विकास भी आवश्यक है। स्वामी जी का कथन था कि हम नारियों का उत्थान करने वाले कौन होते हैं? उनको आवश्यकतानुसार पोषण और शिक्षा मिलने दीजिए, वे अपना उत्थान स्वयं ही कर लेंगी। स्वामी जी के इस कथन को आज हमारी नारी शक्ति ने सही सिद्ध कर दिया है। आज हमारी नारी शक्ति न केवल अपना विकास कर रही है, वरन् राष्ट्र के विकास का आधार बन रही है। स्वामी विवेकानंद ने राष्ट्रवाद और देशभक्ति के महत्त्व पर बल दिया। उनका मानना था कि व्यक्ति को अपने देश के लिए गर्व महसूस करना चाहिए और उसके लिए काम करना चाहिए। आज अपने राष्ट्रगान वन्देमातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर स्मरणोत्सव मनाते हुए हम अपने राष्ट्रीय गौरव से अभिभूत हैं।
स्वामी विवेकानंद के विचार नारी शिक्षा के महत्त्व को उजागर करते हैं। उनके अनुसार, नारी शिक्षा समाज के विकास और सुधार के लिए अत्यंत आवश्यक है। स्वामी जी पश्चिम की नारी से तुलना करते हुए भारतीय नारी को शिक्षा के अवसर प्रदान कर, स्वतंत्र चिंतन करने में समर्थ बनाना चाहते थे। वे चाहते थे कि भारतीय नारी अपने संस्कारों व भौतिक विकास का समन्वय करते हुए स्वयं के विकास, परिवार और समाज में अपना योगदान दे। हम उनके विचारों से प्रेरणा लेकर विभिन्न सरकारी व ग़ैर-सरकारी कार्यक्रमों के द्वारा, महिलाओं को शिक्षा प्रदान करने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। हमें इसमें सफलता भी मिली है। आज नारी सभी क्षेत्रों में अग्रणी भूमिकाओं का निर्वहन कर रही हैं। वे स्वामी जी के सपनों का भारत बनाने में अपना संपूर्ण योगदान दे रही हैं।
स्वामी विवेकानंद ने नारी की महत्ता को बहुत उच्च माना। उनका मानना था कि नारी समाज की आधार हैं और उनकी शिक्षा और उत्थान से ही समाज का उत्थान सम्भव है। स्वामी जी ने पश्चिमी देशों की तरह भारतीय नारियों को शिक्षा, स्वाधीनता और आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के निरंतर प्रयत्न किए। स्वामी द्वारा प्रारंभ किए गए प्रयास अभी भी जारी हैं और भारतीय नारी वैश्विक स्तर पर उभर रहीं हैं। भारत के विकास के लिए महिलाओं के विकास से संबधित स्वामी जी के महत्त्वपूर्ण विचार अधोलिखित हैं:
-
स्वामी विवेकानंद ने महिलाओं को शिक्षा का अधिकार देने की वकालत की। उनका मानना था कि महिलाओं को भी पुरुषों की तरह शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है।
-
स्वामी विवेकानंद ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए शिक्षा के महत्त्व पर ज़ोर दिया। उनका मानना था कि शिक्षा के माध्यम से महिलाएँ आत्मनिर्भर बन सकती हैं और अपने जीवन को बेहतर बना सकती हैं।
-
स्वामी विवेकानंद ने महिलाओं को नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा देने के महत्त्व पर बल दिया। उनका मानना था कि नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा से महिलाएँ अपने जीवन को सार्थक बना सकती हैं।
आज के भारत में स्वामी विवेकानंद के सपने
आज के भारत में स्वामी विवेकानंद के सपने को साकार करने के लिए बहुआयामी प्रयास किए जा रहे हैं। व्यक्ति, समाज और सरकार अधिकांश घटक उनके आदर्शों और विचारों से प्रेरित होकर काम कर रहे हैं। यह प्रयास केवल सरकारी स्तर पर सीमित नहीं हैं। हम सब अपने-अपने स्तर पर अपनी-अपनी भूमिकाओं का निर्वहन कर रहे हैं। हमारी कुछ महत्त्वपूर्ण पहलें इस प्रकार हैं:
-
आत्मनिर्भर भारत अभियान स्वामी जी की कल्पना को साकार करने का अभियान है। सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान शुरू किया है, जिसका उद्देश्य भारत को आत्मनिर्भर और शक्तिशाली बनाना है। यह अभियान केवल सरकार तक सीमित नहीं है। उद्यमियों सहित सभी नागरिक इस अभियान का हिस्सा हैं।
-
शिक्षा और कौशल विकास के द्वारा स्वामी जी युवा शक्ति को सक्षम बनाना चाहते थे। सरकार शिक्षा और कौशल विकास पर ज़ोर दे रही है, जिससे युवाओं को रोज़गार के अवसर प्रदान किए जा सकें। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अन्तर्गत कौशल विकास पर विशेष ज़ोर दिया गया है।
-
सामाजिक सुधार किसी भी देश के बहुआयामी विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है। सरकार और समाज दोनों ही सामाजिक सुधार के लिए काम कर रहे हैं। स्वच्छता अभियान, हर घर को शौचालय, सार्वभौमिक शिक्षा, महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान व सुविधा देने वाले अभियान, दलितों और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं।
ऑपरेशन सिंदूर से विश्व को अपनी शक्ति का अहसास कराता भारत, सौर ऊर्जा के क्षेत्र में तीसरे स्थान पर उत्पादन करते हुए विश्व का नेतृत्व करता भारत, अंतरिक्ष तकनीकी में आगे बढ़ता भारत, तकनीकी के क्षेत्र में आगे बढ़ता भारत, 81 प्रतिशत साक्षरता दर के साथ शत प्रतिशत साक्षरता दर की और बढ़ता भारत, परमाणु शक्ति के रूप में विकसित होता भारत, संयुक्त राष्ट्र संघ में स्थायी सीट का दावा करता हुआ भारत, अपने हर नागरिक तक इंटरनेट संयोजन पहुँचाता हुआ भारत, यूपीआई का अग्रणी प्रयोक्ता भारत, आज ज्ञान-विज्ञान-तकनीक के हर क्षेत्र में उत्तरोत्तर विकास कर रहा है।
स्वामी विवेकानंद जयंती पर हम विचार करें। स्वामी जी ने अपना संपूर्ण जीवन अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए न लगाकर भारत के विकास के लिए लगाया। स्वामी जी ने ’नर सेवा-नारायण सेवा’ को अपना मूल मंत्र मानकर भारत के अंतिम पंक्ति में बैठे भारतीय के आध्यात्मिक विकास के लिए ही नहीं, भौतिक विकास के लिए भी काम किया। उनका मानना था कि धर्म से पहले रोटी की व्यवस्था करनी होगी। आज विश्व की सबसे बड़ी मुफ़्त अन्न योजना के द्वारा सभी भारतीयों को भोजन की व्यवस्था करने में सफलता हासिल हुई है। हम विकसित देशों की क़तार में भले ही नहीं पहुँच पाए हों किन्तु उसकी ओर प्रगति अवश्य कर रहे हैं।
स्वामी विवेकानंद के सपनों का भारत एक आदर्श राष्ट्र की कोरी कल्पना मात्र नहीं है, जहाँ आध्यात्मिकता, शिक्षा और सामाजिक सुधार की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। उनके विचारों और आदर्शों से प्रेरित होकर, हम एक ऐसे भारत का विकास कर रहे हैं जो समृद्ध, शक्तिशाली और आत्मनिर्भर है। स्वामी विवेकानंद ने नारी शिक्षा के महत्त्व पर बहुत ज़ोर दिया। उनके अनुसार, नारी शिक्षा समाज के विकास और सुधार के लिए अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने नारी शिक्षा के माध्यम से समाज में महिलाओं की स्थिति सुधारने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने पर बल दिया। वर्तमान में नारी पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं है। विभिन्न परीक्षाओं की टाॅपर नारी शक्ति ही रहती है।
स्वामीजी भारत के विकास के लिए व्यापार व उद्योग के महत्त्व को भली-भाँति समझते थे। स्वामी जी द्वारा 17 जनवरी 1895, स्वामी त्रिगुणातीत को न्यूयार्क से लिखित पत्र के अंशों से स्पष्ट होता है ’उद्यम की आवश्यकता है, घर बैठे कुछ भी नहीं हो सकता। यदि कोई व्यक्ति कम्पनी स्थापित कर भारतीय वस्तुओं को यहाँ तथा इग्लैण्ड में लाने की व्यवस्था करे तो एक बहुत ही सुन्दर धन्धा चल सकता है।” निःसन्देह स्वामीजी वहाँ भारत के वाणिज्य दूत नहीं थे किन्तु एक देशभक्त अपने देश के सभी पक्षों का ख़्याल रखता है। वर्तमान में हम इसी भाव से काम कर रहे हैं। हमारे सभी नेता पक्ष और विपक्ष के भेद से ऊपर उठकर स्वामीजी के कर्तव्यभाव को धारण कर लें तो भारत को किसी भी देश की ओर निहारने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। हम भविष्य में स्वामी जी के सपनों के विकसित भारत की कल्पना को साकार करने में सक्षम होंगे। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में आपसी विचार-विमर्श और मत-भिन्नता के कारण विकास प्रक्रिया भले ही धीमी रही हो किन्तु अब वह गति पकड़ रही है, शक्तिशाली, विश्वसनीय और आत्मनिर्भर बन रही है। आशा है हम निकट भविष्य में स्वामी जी के सपनों को पूरे कर पाने में समर्थ हो जाएँगे और विकसित भारत के नागरिक कहलाने लगेंगे।