अन्तर्मन का दीप जलायें

01-10-2025

अन्तर्मन का दीप जलायें

डॉ. संतोष गौड़ 'राष्ट्रप्रेमी' (अंक: 285, अक्टूबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

दीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का, दीप जलायें। 
प्रतीकों को छोड़ बढ़ें अब, स्वच्छता का, अलख जगायें। 
 
अविद्या का अंधकार छोड़कर। 
कुप्रथाओं का जाल तोड़कर। 
आगे बढ़ो, विकास के पथ पर, 
निराशाओं से मुँह मोड़कर। 
 
उर घावों से भले ही पीड़ित, प्रेम से घावों को सहलायें। 
दीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का दीप जलायें॥
 
सूचना को, शिक्षा ना समझो। 
जीना ही बस लक्ष्य न समझो। 
शिक्षा तो आचरण सुधारे, 
मानवता की परीक्षा समझो। 
 
पशुओं से भी निकृष्ट आचरण, शिक्षित वह कैसे कहलायें। 
दीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का दीप जलायें॥
 
पढ़ते कुछ, करते कुछ और हैं। 
कर्त्तव्य नहीं, करते कुछ और हैं। 
कथनी कुछ, करनी कुछ और ही, 
दिखते कुछ, अन्दर कुछ और हैं। 
 
पत्नी बनकर, ठगी कर रहीं, शिकार को प्रेम से, ये सहलायें। 
दीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का दीप जलायें

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें