विद्रोह

15-06-2023

विद्रोह

नरेंद्र कौर छाबड़ा (अंक: 231, जून द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

कपूर दंपती की नौ वर्षीय बेटी दोपहर को अचानक आई और सुबकने लगी। मैंने प्यार से पूछा, “क्या बात है पिंकी क्या हुआ?” 

सिसकती सी वह बोली, “माँ रो रही है . . .” 

बड़ी हैरानी हुई पूछा, “क्यों?” 

“पिताजी ने उन्हें मारा . . .” धीरे से वह बोली। 

“क्या . . .?” मेरी हैरानी बढ़ती जा रही थी। पूछा, “तुमने खाना खाया?” 

“नहीं . . .” उसकी आँखों में कातरता के भाव थे। मैं उसे रसोई में ले गई और खाना खिलाया। अगले सप्ताह वह सवेरे ही आ गई और रोती हुई बोली, “आंटी, पिताजी ने रात को माँ को बहुत मारा। घर से निकाल दिया। रात भर वह सीढ़ियों के नीचे ही रही . . .” 

मैं स्वयं को रोक ना पाई। अगले दिन उनके घर गई। बातों ही बातों में प्रश्न किया कि आप मारपीट क्यों बर्दाश्त करती हैं? आप की इकलौती बेटी के मन मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ेगा आपने कभी सोचा है? 

“सोचना क्या है बहन जी? बचपन में अपनी माँ को पिताजी से पिटते हुए देखती थी। तो महसूस होने लगा कि शायद यह भी दिनचर्या का ही एक अंग है। शादी के बाद अपने पति की मारपीट पर कुछ आश्चर्य नहीं हुआ। अब पिंकी यह सब देखती है तो भविष्य में होने वाले इसी व्यवहार के लिए तैयार तो रहेगी।” 

मुझे घोर आश्चर्य हुआ, “कमाल करती हैं आप भी। बेटी को अन्याय का विद्रोह करने, अनुचित कार्य का प्रतिरोध करने की शिक्षा के बजाय उसे दब्बू, डरपोक बना रही हैं। यह कौन सा ज्ञान दे रही है?” 

कुछ दिनों बाद वे दूसरे मोहल्ले में रहने चले गए। एक दिन वे किसी समारोह में मिले। उत्सुकतावश पूछ लिया, “क्या अब भी आपके पहले जैसे मारपीट . . . ?” 

“नहीं, अब वे काफ़ी बदल गए हैं,” उनके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव थे। “उस दिन आपकी बातें पिंकी सुन रही थी। अगली बार जब पति ने मुझ पर हाथ उठाया तो पिंकी ने लपक कर उसे बीच में थाम लिया और बोली, ‘पिताजी बहुत हाथ उठा चुके हैं आप माँ पर। अब अत्याचार नहीं चलेगा। भविष्य में अगर आप ने हाथ उठाया तो मैं और माँ इस घर में नहीं रहेंगे या आप को इस घर से जाना पड़ेगा . . .’ 

“पिंकी के चेहरे पर क्रोध और आवेश के भाव देखकर पति हक्के-बक्के रह गए। फिर उनका हाथ नीचे चला गया और पश्चाताप के भाव उभरने लगे। बस उसके बाद उन्होंने मुझ पर हाथ उठाना बंद कर दिया।” 

एक सुखद आश्चर्य हुआ। पिंकी के भीतर विद्रोह की चिंगारी का जन्म हो गया था जो अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने में समर्थ थी। 

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