वह अदृश्य तत्व

01-11-2021

वह अदृश्य तत्व

विनय एस तिवारी (अंक: 192, नवम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

गर्मियों में जब कट जाती हैं फ़सलें,
और खेत बन जाते हैं मैदान
किसी साँझ उसी मैदान के पास
आम के पेड़ के नीचे से गुज़रने वाले
ढर्रे पर, अक़्सर साँझ भर बैठ
विकर्तन का चले जाना अपलक देखता हूँ।
 
गर्मियों की रात में देखता हूँ अनगिनत तारे,
और देखता हूँ प्रकृति का निबाध विस्तार,
करता हूँ प्रपंचों का सूक्ष्म विश्लेषण।
 
सर्दी में कोहरे की अदृश्यता में,
डूबते सूर्य को देख, रात्रि में तारों को देख 
खोजता हूँ वह अदृश्य तत्व,
कि जिसके बिना कहाँ खिलते हैं पुष्प?
कि जिसके बिना कहाँ चैतन्य होता मानव?
 
मैं हर जगह वही अदृश्य तत्व खोजता हूँ-
जो ऊर्जा का ‛आदि’, नियति का ‛सर्जक’ है ।
कि जिसे ब्रह्मसूत्र कहता है ‛जन्माद्यस्य यतः’।

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