मैं कौन हूँ?
विनय एस तिवारीयह कविता जगतगुरु आदिशंकराचार्य जी के कथन 'जीवो ब्रह्मेव नापराह' और बृहदारण्यक उपनिषद के कथन ‛अहं ब्रह्मास्मि’ से प्रेरित है, जो कि अद्वैतवाद दर्शन का मूल है।
मैं अखिल सृष्टि का एक बिंदु,
मुझमें शामिल परिपूर्ण सिंधु।
मैं! जगत चराचर में जो व्याप्त
सत्च्चिदानंद का तेज प्राप्त।
मैं! उपनिषदों के एक वाक्य–
‛मैं ही हूँ ब्रह्म’ का पूर्ण सत्य।
मेरा, शंकर का वह परिचय–
गुरु गोविंदपाद ने किया प्राप्त।
केशव मुझमें, मैं ही केशव
अद्वैतवाद मुझमें है व्याप्त।
जिससे होती है वायु प्रबल,
जिससे पाता है जन सम्बल।
जो नचिकेता को प्राप्त हुआ,
प्रह्लाद जिसे पा पूर्ण हुआ।
मैं उसी सिंधु का एक बिंदु
मुझमें शामिल वह पूर्ण सिंधु।
मैं अखिल सृष्टि का एक बिंदु,
मुझमे शामिल परिपूर्ण सिंधु।
1 टिप्पणियाँ
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अत्यंत सुंदर कविता.... मन को मुग्ग्ध करने वाली तेजस्वी कविता