उठो युवा तुम उठो ऐसे
शिवराज आनंद
उठो युवा तुम उठो ऐसे
चक्रवात में तूफ़ां उठता है जैसे॥
हाँ, अब कौन युवा, तुम्हारे सिवा?
रक्षक प्यारे देश का।
तू चाहते तो तांडव मचे,
देर है तेरे उस वेष का॥
अब तो सब से आस भी टूटी।
लगने लगी है दुनिया भी झूठी॥
कैसी जननी? कि कैसा लाल?
जो जनकर भी जना क्या लाल?
जो देश की गरिमा बचा सके।
ध्वंस कर रावण-राज धरा से
एक आदर्श राम-राज्य बना सके॥
तुम देश के आन हो।
हिन्दू हो या मुसलमान हो।
किसी मज़हब के नहीं,
“तुम मातृभूमि के लाल हो॥”
तुम कालों के भी महाकाल हो
फिर क्यों अनजान हो?
क्या नेता-मंत्रियों से परेशान हो?
ओह! कही विलीन न हो मेरे सपनों का भारत!
हे महारथ! तुझमें है सामर्थ . . . रोक दे ए अनर्थ . . .
अगर है मोहब्बत . . . तो अपनी यौवन-शक्ति जगा दे।
आज अपने युग से भ्रष्टाचार मिटा दे।