उसके लिए . . .
अनिल कुमार पुरोहित
वो जानता—कहाँ सजाना मुझे
शब्द एक मैं उसके लिये—
नित नए भावों में सजा मुझे
कविता अपनी निखार रहा।
तलाश कर रहा वह—एक नयी धुन
स्वर एक मैं, उसके लिये—
साज़ पर अपने तरंगों में सजा
कविता में प्राण नए फूँक रहा।
देखा है मैंने उसे—खींचते आड़ी तिरछी रेखाएँ
रंग एक मैं, उसके लिए—
तूली पर अपनी सजा
सपनों को आकार इन्द्रधनुषी दे रहा।
लहरों सा बार बार भेजता मुझे
कभी सीपी देकर, तो कभी मोती
सब कुछ किनारे धर बेकल सा मैं
बार बार लौट—समा जाता उसमें!