उमर के साथ साथ किरदार
दीपक शर्मा 'दीपक’उमर के साथ साथ किरदार बदलता रहा
शख़्सियत औरत ही रही, प्यार बदलता रहा।
बेटी, बहिन, बीबी, माँ, ना जाने क्या क्या
दहर औरत का चेहरा हर बार बदलता रहा।
हालात ख़्वादिनों के न सदी कोई बदल पाई
सदियाँ गुज़रती रहीं बस संसार बदलता रहा।
प्यार, चाहत, इश्क, राहत, माशूक और हयात
मायने एक ही रहे पर मर्द बात बदलता रहा।
किसी का बार कोई इंसान नहीं उठा सकता यहाँ
कोख में पलकर ज़िस्म एक आकार बदलता रहा।
सियासत, बज़ारत, तिज़ारत या फिर कभी हुकूमत
औरत बेआवाज़ बिकती रही और बाज़ार बदलता रहा।
बातों से कब तलक बहलाओगे दिल तुम "दीपक"
करार कोई दे ना सका बस करार बदलता रहा।
1 टिप्पणियाँ
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8 Mar, 2022 10:51 PM
इस कविता ने अन्दर तक असर किया दीपक जी बेहतर और चुनिन्दा असरकारी पंक्तियाँ......