उजालों के ना जब तक आये पैग़ाम
दीपक शर्मा 'दीपक’उजालों के ना जब तक आये पैग़ाम चिराग़ जलते रहें
मयस्सर हो ना रोशनी हर बाम चिराग़ जलते रहें।
अँधेरे ख़ुद ही दामन ओद लें आकर शुआयों के,
नूरानी जब तक ना हो जाएँ गाम चिराग़ जलते रहें।
हमारी आँख में चमके चिराग़ अपनी मोहब्बत के ,
दिलों में प्यार के सुबह-ओ-शाम चिराग़ जलते रहें।
सजा लो लाख़ लड़ियाँ बिजली की दर-ओ-दीवारों पे,
मगर दहलीज़ पर घी के मेरे राम चिराग़ जलते रहें।
रोशनी जो भी दे “दीपक” बस वही मशहूरियत पायें
ख़्याल रहे ना किसी राह गुमनाम चिराग़ जलते रहें