तुम होते हो . . .

01-06-2023

तुम होते हो . . .

अनुपमा श्रीवास्तव ‘अनुश्री’  (अंक: 230, जून प्रथम, 2023 में प्रकाशित)


शब्द ‘इक’ छुपा है
इन शब्दों के आगार में
तुम होते हो तो
इसे विस्तार मिलता है
तहरीरें तब पानी पर 
लिखी नहीं लगतीं
किताबों में पढ़ी
नहीं लगती
गीतों, बातों में 
सुनी नहीं लगतीं
सचमुच का 
शृंगार मिलता है। 
तुम होते हो 
विस्तार मिलता है॥
 
दूरियों की ख़लिश न जाने
कितनी बातें करती है
नजदीकियों की कशिश 
बिन कहे ही सब कहती है
लम्हों में गर्माहट भरती है
सांँसें साथ बहती हैं
अवनि से अनंत तक
संसार बनता है। 
तुम होते हो 
विस्तार मिलता है॥
 
तन्हाइयों की 
कड़ियांँ खुल जाती हैं
नेह की लड़ियांँ
जुड़ जाती हैं
चेतना के पट
खुल जाते हैं
भावनाओं की
झांँझर झनकती है
हर हर्फ़ में रंग भरता है
कविताओं को 
सार मिलता है
तुम होते हो
विस्तार मिलता है॥

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