तुझे हो यक़ीं न हो यक़ीं
संजीव प्रभाकर
11212 11212 11212 11212
मुझे और कोई नहीं है डर, तुझे हो यक़ीं न हो यक़ीं,
मैं जो चुप हूँ तो तुझे सोचकर, तुझे हो यक़ीं कि न हो यक़ीं।
तू ने जिस जगह पे कहा मुझे, “न तू याद कर न तू याद आ,”
मैं खड़ा रहा वहीं उम्रभर, तुझे हो यक़ीं कि न हो यक़ीं।
तू ख़्याल में कहीं और था, तुझे रोकता भी तो किस तरह,
मेरी चीख भी रही बे-असर, तुझे हो यक़ीं कि न हो यक़ीं।
यूँ तो दरमियान तेरे मेरे, न थे ताल्लुकात बचे मगर,
तेरी रख रहा था मैं हर ख़बर, तुझे हो यक़ीं कि न हो यक़ीं।
तेरे बाद क्या क्या नहीं हुआ, जो न चाहिए था वो सब हुआ,
मिली ठोकरें मुझे दर-ब-दर, तुझे हो यक़ीं कि न हो यक़ीं।
वहाँ और कुछ न रहा है अब, वहाँ सिर्फ़ एक मकान है,
वो जो घर था अब न रहा वो घर, तुझे हो यक़ीं कि न हो यक़ीं।
तेरा रास्ता मेरा रास्ता, हुआ जिस जगह था अलग-अलग,
मैं अभी भी हूँ उसी मोड़ पर, तुझे हो यक़ीं कि न हो यक़ीं।