तूफ़ानों में उनके छोड़ जाने...
उपेन्द्र 'परवाज़'तूफ़ानों में उनके छोड़ जाने का इस्तक़बाल
ग़म दे दे के मुझको रुलाने का इस्तक़बाल।
ठोकरों ने मंज़िल तक पहुँचा दिया मुझे
रास्ते में पत्थरों को बिछाने का इस्तक़बाल।
पतवारों से धोखा खा के अब हम तैराक हो गए
नाख़ुदा को नाव डुबाने का इस्तक़बाल।
होती परिन्दों की कहाँ ये ऊँची उड़ानें
खुदा तेरे बादे मुख़ालिफ़ चलाने का इस्तक़बाल।
सब कुछ लुटा तो ख़त्म हुआ आवारगी का डर
रक़ीबों को घर में आग लगाने का इस्तक़बाल।
मिलते न ग़म तो कौन करता ये शायरी
दुनिया को ग़म के घूँट पिलाने का इस्तक़बाल।
अब छीनेगा कौन हम से मंज़िले “परवाज़”
चिंगारियों को आग़ बनाने का इस्तक़बाल।