अब हमने हैं खोजी नयी ये वफ़ायें
उपेन्द्र 'परवाज़'अब हमने हैं खोजी
नयी ये वफ़ायें
माँगनी शुरू कर दी
दुश्मनों के लिए दुआयें।
हम क्या बुझाते अब
इस आग़–ए–ज़िगर को
जब मिल रही थी
उनके दामन से हवाएँ।
अगर उनसे मरासिम
रखना एक ख़ता है
तो हो रही है हमसे
ख़ता पर ख़ताएँ।
हमें कूदने की ही
जल्दी पड़ी थी
दुनिया सँभाल रही थी
दे दे के सदायें।
अब कौन करे रंज अपने
इस जनाज़े का “परवाज़”
जब मुहब्बत में मिलनी
थी तुझको जफ़ाएँ।