द ग्रेट कंजकंशन 

01-10-2021

द ग्रेट कंजकंशन 

डॉ. आशा मिश्रा (अंक: 191, अक्टूबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

ग्रेट कंजकंशन के समय वास्तव में जुपिटर और सैटर्न ४५६ मिलियन मील दूर थे। यह कविता इस विषय में है। 
 

अनंत आकाश में  तैरते हुए,   
अपनी अपनी धुरी पर घूमते हुए,
बृहस्पति और शनि  
होते हैं एक दूसरे से बहुत दूर,
अपनी अपनी सीमाओं  में 
रहने को मजबूर।
  
एक दूसरे के बिना उदास, 
आना चाहते आस पास,
वर्षों के अंतराल के बाद आते हैं समीप
दूर से हमें ऐसा होता है प्रतीत 
प्रसन्न होकर मिल रहे हों दो मीत।
जैसे दो प्रेमी मिल रहे हों गले,
दूर से लगते वह बड़े भले। 
  
बृहस्पति और शनि का मिलन 
वास्तव में यह है एक भ्रम, 
उनकी दूरी का परिमाण है विषम।
दूर से नज़र आते थे समीप 
देखने में अंगुल भर की दूरी 
पर थी इनके बीच लाखों मीलों की मजबूरी।
  
जीवन के कई मानवीय रिश्ते, 
होते हैं इन्हीं के जैसे, 
पास रहकर भी  हैं दूर
दूर से  लगते हैं नज़दीक
 
एक दूसरे के क़रीब, पर असल में  होते हैं दूर,
उनके दिलों में रहता कष्ट भरपूर।
मीलों की दूरियाँ रह जाती दिलों में
दायरों में घूमते से  भुरभुरे रिश्ते 
जुड़े तो रहते रहते हैं, पर पनपते नहीं 
दूर से देखने की अपेक्षा
संवेदना की  दूरबीन लगा कर 
हृदय  की भावनाओं में  झाँकना होगा, 
उन भावनाओं को गहराई से आँकना होगा।
 
और महसूस करना होगा, 
समझनी होंगी उनकी सीमाएँ, 
तभी  हम पकड़ पाएँगे,
उन बिखरते रिश्तों की डोर,
वरना ढोते रहेंगे उम्र भर,
अपने-अपने दर्दों के पुलिन्दे,      
और भटकते रहेंगे इस अनंत आकाश में।

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