स्वतंत्रता दिवस के नाम
डॉ. गोरख प्रसाद ’मस्ताना’रोटी, नमक
प्याज़ लिख देना
बढ़ता हुआ
ब्याज लिख देना
टूटी लटकी
छप्पर छानी
चूल्हा चौकी
पानी पानी
रोते दृग सी
चूए पलानी
दीनों की है
यही कहानी
चहुंदिश तमस
राज लिख देना
चिथड़ों सम ही
फटाभाग्य है
साँसें क्या
बेसुरा राग हैं
टूटी सड़कें
लगते सपने
ग़ैरौं जैसे
सारे अपने
सड़ा घाव
'आज', लिख देना
फटे दूध-सी
हँसी अधर की
बे पानी है
नियत नज़र की
भ्रम वितरण की
सदा सोचते
गिद्ध बने
आबरू नोचते
वे हैं झपट
बाज़ लिख देना।