सुकून 

प्रियंका गुप्ता (अंक: 255, जून द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

हम बनाते हैं रेत के क़िले, 
जो पलभर में नष्ट हो जाने हैं। 
बनाते हैं पानी के बुलबुले, 
जानते हैं, कि वे क्षणभंगुर हैं। 
 
रिमझिम बारिश में, काग़ज़ की नाव, 
कुछ देर में ही जलमग्न हो जाएगी। 
पानी में पत्थर फेंक बनाते हैं लहरें, 
जो कुछ ही देर में बिखर जानी हैं। 
 
देखते हैं कितने ही रंगीन सपने, 
जानते हैं, कि पूरे कितने ही हो पाएँगे। 
जोड़ते हैं कितनी माया और रिश्ते, 
जानते हैं, ये जीवन और संसार नश्वर हैं। 
 
परन्तु, रेत के क़िले बनाने में जो सुख है, 
पानी के बुलबुले बनाने में जो आनंद है। 
काग़ज़ की नाव तैराने में, जो मज़ा है, 
पानी में लहर बनाने में, जो सुकून है। 
 
ये सुकून ही तो जीवन का आनंद है! 
ये आनंद है अनमोल रस, इस नीरस जीवन में, 
ये वही रस है जो जीवन को देता एक राह है! 
जो बतलाता है, हर पल को जीना ही जीवन है। 

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