अच्छी औरत

15-02-2023

अच्छी औरत

प्रियंका गुप्ता (अंक: 223, फरवरी द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

शादी, 
एक अटूट बन्धन है, 
पवित्र रिश्ता है, 
पति पत्नी का। 
जिस बन्धन मेंं, 
स्त्री ख़ुशी-ख़ुशी बँधती है, 
सारे रिश्ते-नाते
व फ़र्ज़ निभाती है। 
 
सुंदर कपड़ों 
व क़ीमती आभूषणों से लदी, 
नए रूप-रंग मेंं 
सजती-सँवरती है। 
पति के चरणों में स्वर्ग, 
घरवालों मेंं रिश्ते, 
हर जगह अपनापन
और आशीर्वाद ढूँढ़ लेती है। 
 
खनकती चूड़ियाँ व कंगन, 
छनकती पायल, 
सर पे घूँघट, 
माथे पर सिंदूर, 
होंठों पर लाली, 
और, कानों मेंं बाली। 
ओढ़े हुए है चादर फ़र्ज़ 
और ज़िम्मेदारी की। 
 
रखना है ध्यान पति का, 
करनी है हर ज़रूरत पूरी, 
बनाना भी है परिवार, 
और सबकी इच्छा पूरी
निपुण भी होना है पाक-कला, 
गृह-सज्जा इत्यादि मेंं, 
क्योंकि, 
अच्छी औरतें यही तो करती हैं! 
 
बच्चों का पालन-पोषण, 
देखभाल व साज-सँभाल, 
घर का राशन, हिसाब-किताब, 
करती रहती गुणा-भाग। 
कभी ख़त्म न होते 
ताउम्र चलती है ये अनंत भागीदारी, 
यही मानदंड तो तय करते हैं, 
कितनी अच्छी औरत है बेचारी। 
 
इसी उधेड़-बुन मेंं फँस कर, 
दे रही ख़ुद की क़ुर्बानी, 
प्रेम बन्धन मेंं बँधकर, 
करती सबकी गुलामी। 
सोने के पिंजरे मेंं वो क़ैद, 
होती आत्म-सम्मान की नीलामी, 
घर के कामों मेंं ऐसी उलझी, 
हो जाती अस्तित्व की गुमनामी। 
 
भँवर मेंं फँसी हुई औरत की, 
तरक़्क़ी रोकते कई घटक
कि चूड़ियाँ लगे हथकड़ियाँ
बेड़ी लगें पायल। 
बिछिया, अँगूठी तय करते
हाथ-पैरों की गतिविधियाँ, 
तो मंगलसूत्र व सिंदूर जताता है, 
पति का स्वामित्व। 
 
ब्लाउज़ तय करता है, 
साँस लेने की सीमा भी
तो साड़ी तय करती है, 
ज़्यादा लम्बे न हों क़दम। 
पल्ला दर्शाता है, 
चरित्र, चाल चलन और मर्यादा, 
घूँघट तय करता है, 
नज़र और नज़रिया। 
 
इसी उहापोह मेंं 
फँसी रह जाती है, 
चाहर दीवारी मेंं बंद रहकर, 
पुरातन हो जाती है। 
दुनिया के साथ 
क़दम ताल नहीं मिला पाती है, 
इस प्रकार वो, जहाँ थी
वहीं खड़ी रह जाती है। 

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