शोध प्रविधि: अवधारणा एवं विश्लेषण

15-02-2023

शोध प्रविधि: अवधारणा एवं विश्लेषण

मिथुन राम (अंक: 223, फरवरी द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

सारांश: मनुष्य स्वभावत: एक जिज्ञासु प्राणी है। मनुष्य अपनी जिज्ञासु प्रकृति के कारण विकास, सुख और समृद्धि के लिए विविध प्रश्नों को खड़ा करता है साथ ही उन प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ने का हमेशा प्रयत्न करता रहता है। प्रश्नों को खड़ा करने और उत्तर ढूँढ़ने के लिए ज्ञान और अनुप्रयोग की आवश्यकता पड़ती है। इसके माध्यम से ही सत्य जानने का प्रयास करता रहता है। इस प्रयास के क्रम में वह नवीन सूचनाएँ प्राप्त कर सत्यता की जाँच-परख भी करता है। इस प्रकार यह प्रक्रिया से ज्ञान के आयाम में विस्तार व वृद्धि होती है। वस्तुतः यह प्रक्रिया करने में शोध की विशिष्ट भूमिका होती है। शोध प्रविधि की अवधारणा को पूरी वैज्ञानिकता से स्पष्ट करने का प्रयास रहा है साथ ही शोध के विविध व नए आयामों को विश्लेषित कर नए परिणाम प्राप्त करने का लक्ष्य रहा है। 

कुंजी शब्द: शोध प्रविधि, अनुसन्धान, शोध। 

प्रस्तावना: ‘शोध’ का हिन्दी पर्याय अनुसन्धान, गवेषणा, खोज, अन्वेषण, मीमांसा, अनुशीलन, परिशीलन आदि है। ‘शोध’ शब्द अंग्रेज़ी के ‘Research’ शब्द का हिंदी रूपांतर है। यह शब्द ‘Re’ प्रिफ़िक्स तथा ‘Search’ शब्द के मेल से बना है। ‘रि’ शब्दांश आवर्ती और गहनता का घोतक है जबकि ‘सर्च’ शब्दांश खोज का समानार्थी है। इस प्रकार ‘शोध’ का शाब्दिक अर्थ होता है क्रमशः पुनः और खोज अथवा प्रदत्तों की आवृत्तयात्मक गहन खोज। अर्थात् पुन: खोज करना है या गहनता से बार-बार खोजने से संबंधित है। व्यापक अर्थ में देखें तो शोध (Research) किसी भी क्षेत्र में ‘ज्ञान की खोज करना’ या 'विधिवत गवेषणा' करना होता है। ‘शोध’ में खोज, पूछताछ, छान-बीन, जाँच-पड़ताल, गहन निरीक्षण, व्यापक परीक्षण, योजनाबद्ध अध्ययन, सोद्देश्य एवं तत्परता-युक्त सामान्य निर्धारण आदि की प्रक्रियाएँ महत्त्वपूर्ण है। इस प्रकार हम देखते हैं कि शोध (Research) के द्वारा हम कुछ नया आविष्कृत कर ज्ञान परम्परा में कुछ नया अध्याय जोड़ने का प्रयास करते हैं। शोध का आधार विज्ञान और वैज्ञानिक पद्धति है, जिसमें ज्ञान भी वस्तुपरक होता है। तथ्यों के अवलोकन से कार्य-कारण सम्बन्ध ज्ञात करना शोध की प्रमुख प्रक्रिया है। इस अर्थ में हम स्पष्ट देख पा रहे हैं कि शोध का सम्बन्ध आस्था से कम, परीक्षण से अधिक है। शोध-वृत्ति का उद्गम-स्रोत प्रश्नों से घिरे शोधकर्मी की संशयात्मा होती है। प्रचारित मान्यता की वस्तुपरकता पर शोधकर्मी का संशय उसे प्रश्नाकुल कर देता है; फलस्वरूप वह उसकी तथ्यपूर्ण जाँच के लिए उद्यमशील होता है। स्थापित सत्य है कि हर संशय का मूल दर्शन है; और सामाजिक परिदृश्य का हर नागरिक दर्शन-शास्त्र पढ़े बिना भी थोड़ा-थोड़ा दार्शनिक होता है। संशय-वृत्ति उसके जैविक विकास-क्रम का हिस्सा होता है। यह वृत्ति उसका जन्मजात संस्कार भले न हो, पर जाग्रत मस्तिष्क की प्रश्नाकुलता का अभिन्न अंग बना रहना उसका स्वभाव होता है। प्रत्यक्ष प्रसंग के बारे में अधिक से अधिक ज्ञान हासिल करने की लालसा और प्रचारित सत्य की वास्तविकता सुनिश्चित करने की जिज्ञासा अपने-अपने सामथ्र्य के अनुसार हर किसी में होती है। यही लालसा जीवन के वार्द्धक्य में उसकी चिन्तन-प्रक्रिया का सहचर बन जाती है, जिसे जीवन-यापन के दौरान मनुष्य अपनी प्रतिभा और उद्यम से निखारता रहता है। शोध का सामान्य अर्थ से आगे बढ़कर जब हम शोध के आदर्श स्वरूप, प्रकृति और क्षेत्र के संदर्भ पर विचार करते हैं तो हमें इसके लिए एक व्यवस्थित परिभाषा की आवश्यकता होती है, जिसे हम निम्नलिखित रूप में देख सकते हैं। 

अनुसंधान की परिभाषा (Definition of Research):

1. ‘वैब्सटर्स डिक्शनरी’में रिसर्च की परिभाषा निम्न प्रकार से दी गई है-‘Research is a critical and exhaustive investigation or examination having for its aim the discovery of new facts and their correct interpretation, the revision of accepted conclusions, theories and lows। '
2. सामाजिक विज्ञान के ज्ञान-कोष के अनुसार-‘अनुसंधान वस्तुओं, प्रत्यायों आदि को कुशलता से व्यवस्थित करता है, जिसका उद्देश्य सामान्य करण द्वारा विज्ञान का विकास, परिमार्जन अथवा सत्यापन होता है, चाहे वह ज्ञान व्यवहार में सहायक हो अथवा कला में।’
3. रैडमैन और मोरी ने अपनी पुस्तक 'द रोमांस ऑफ़ रिसर्च' में शोध का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है कि 'नवीन ज्ञान की प्राप्ति के व्यवस्थित प्रयत्न को हम शोध कहते हैं। '
4. डब्लू. एस. मनरो के अनुसार, “अनुसंधान उन समस्याओं के अध्यययन की एक विधि है जिसका अपूर्ण अथवा पूर्ण समाधान तथ्यों के आधार पर ढूँढ़ना है। अनुसंधान के लिए तथ्य, लोगों के मतों के कथन, ऐतिहासिक तथ्य, लेख अथवा अभिलेख, परखों से प्राप्त फल, प्रश्नावली के उत्तर अथवा प्रयोगों से प्राप्त सामग्री हो सकती है।’
5, डॉ.एम. वर्मा के अनुसार: ‘अनुसंधान एक बौद्धिक प्रक्रिया है जो नये ज्ञान को प्रकाश लाती है अथवा पुरानी कमियों एवं धारणाओं का परिमार्जन करती है तथा व्यवस्थित रूप में वर्तमान ज्ञान के कोष में वृद्धि करती है।’

शोध प्रविधि: शोध के बारे में जानने व समझने के लिए आवश्यकता अनुरूप शोध प्रविधियों का प्रयोग किया है। आए दिन शोध प्रविधि में नए-नए पद्धति, नए-नए उपकरण, नए-नए खोजों का प्रयोग लगभग शोध के हरेक क्षेत्र में किया जा रहा है। प्रस्तुत शोध आलेख में विचार-विश्लेषण, नए नए पुस्तकों, नए-नए पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से वैज्ञानिक दृष्टिकोण को सुदृढ़ बनाने का प्रयास किया गया है। 

व्याख्या एवं विश्लेषण: हमारा यह संसार प्राकृतिक एवं चमत्कारिक अवदानों से परिपूर्ण है। अनन्त काल से यहाँ तथ्यों का रहस्योद्घाटन और व्यवस्थित अभिज्ञान का अनुशीलन होता रहा है। कई तथ्यों का उद्घाटन तो दीर्घ अन्तराल के निरन्तर शोध से ही सम्भव हो सका है। ज़ाहिर है कि इन तथ्यों की खोज और उसकी पुष्टि के लिए शोध की अनिवार्यता बनी रही है। शोध में बोधपूर्ण तथ्यान्वेषण एवं यथासम्भव प्रभूत सामग्री संकलित कर सूक्ष्मतर विश्लेषण-विवेचन और नए तथ्यों, नए सिद्धान्तों के उद्घाटन की प्रक्रिया को सम्पूर्ण किया जाता है। शोध का विचार बनने पर यह सोचना आवश्यक होता है कि आख़िर शोध किया क्यों जाएगा। इस बात की सटीक जानकारी सही दिशा और शोध की सफलता के लिए आवश्यक होती है। उदाहरणस्वरूप, अगर शोध किसी उपाधि के लिए किया जाता है तब या फिर किसी व्यावसायिक उद्देश्य के लिए किया जाता है तब, दोनों के लिए भिन्न प्रकार की दृष्टि अपनानी पड़ती है। 
शोध के उद्देश्य:

  1. शोध प्रविधि प्रयुक्त करने से पहले विषय निर्धारित किया जाता है, फिर उसकी रूपरेखा तैयार की जाती है। विषय निर्धारण एवं रूपरेखा के बिना शोधकार्य का उद्देश्य कभी पूरा नहीं हो सकता है। 

  2. किसी भी विषय या विविध क्षेत्रों में नए-नए सत्य की खोज करना। शोध नए सत्यों के अन्वेषण द्वारा अज्ञान मिटाता है, सच की प्राप्ति हेतु उत्कृष्टतर विधियाँ और श्रेष्ठ परिणाम प्रदान करता है। 

  3. पुराने सत्य को नये ढंग या नए-नए नज़रिए से देख विविध पहलुओं को छानना। 

  4. शोध के नए उपागमों, सिद्धांतों, पद्धतियों, उपकरणों तथा नियमों का प्रयोग करके शोधकार्य को वैज्ञानिक बनाना है। 

  5. विज्ञानसम्मत कार्यविधि और बोधपूर्ण तथ्यान्वेषण द्वारा विषय-प्रसंग-घटना, व्यक्ति एवं सन्दर्भ के बारे में सूचित समस्याओं, शंकाओं, दुविधाओं का निराकरण ढूँढ़ना। 

  6. विषयों की प्रकृति, गठन तथा प्रक्रिया की विशेषताओं को ज्ञात करना। शोध के अनेक नवीन कार्य-विधियों एवं उत्पादों को विकसित करना। 

  7. वैयक्तिक, सामाजिक, बौद्धिक तथा सर्वांगीण विकास करना। 

  8. सुपरिभाषित पद्धतियों और निर्धारित नियमों के अनुपालन के साथ शोधकार्य को सुव्यवस्थित, तार्किक तथा कुशल बनाना है। 

  9. शोध प्रविधि के माध्यम से विषय की कमियों व कमज़ोरियों को उजागर कर उसका अध्ययन व विश्लेषण किया जाता है। 

  10. समाज हित में बेहतर रचनात्मक-सृजनात्मक कार्य को बढ़ावा देने के साथ-साथ लोगों में रुचि और जिज्ञासा पैदा करना। 

शोध की विशेषताएँ:

वस्तुनिष्ठता, तटस्थता, क्रमबद्धता, तार्किकता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, यथार्थता, निष्पक्षता, विश्वसनीयता, प्रमाणिकता, तथ्यान्वेषण, समयावधि का उल्लेख एवं अनुशासनबद्धता, सन्दर्भों की सच्ची प्रतिकृति–किसी बेहतर शोध की विशिष्ट विशेषताएँ हैं। अतः सामान्य रूप से शोध की विभिन्न विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं। वे निम्नलिखित हैं:

(1) शोध वैज्ञानिकता का द्योतक: शोध चाहे किसी भी क्षेत्र में हो समाज से सम्बन्धित विभिन्न तथ्य चाहे वह नवीन तथ्यों की खोज करने के सम्बन्ध में हो अथवा पुराने ज्ञात तथ्यों को सत्यापित करने के लिए केवल तर्क, अनुमान या दर्शन का सहारा ना लेकर निरीक्षण, परीक्षण, प्रयोग, तर्क, विमर्श, साक्षात्कार, विश्लेषण और सामान्यीकरण पर आधारित वैज्ञानिक पद्धति का सहारा लिया जाता है। अतः यह कहा जा सकता है कि शोध की प्रकृति पूर्ण रूप से वैज्ञानिकता की श्रेणी खरा उतरता है। 
(2) सामाजिक संदर्भों से सम्बन्धित: साहित्य और समाज एक दूसरे के पूरक हैं। साहित्य के बिना समाज और समाज के बिना साहित्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। शोध के क्षेत्र में समाजशास्त्र का आगमन सामाजिक अध्ययनों को जानने व समझने में विशेष योगदान दिया है। ऐसे शोध के बहुत सारे क्षेत्र हैं जिसके माध्यम से लोगों को सामाजिक सम्बन्धों एवं संदर्भों को जानने में विशेष मिल रही है। शोध के माध्यम से सामाजिक सम्बन्धों, सामाजिक समस्याओं, घटनाओं। सामाजिक यथार्थ आदि के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त की जाती है। इसके माध्यम से ही समाज के विभिन्न पक्षों के सम्बन्ध में विस्तृत व वैज्ञानिक ज्ञान उपलब्ध हो पाता है। 
(3) नवीन तथ्यों की खोज व पुराने ज्ञान का परिमार्जन: साहित्य अध्ययन का विषय है इसलिए इसकी रुचि न केवल नवीन तथ्यों की खोज में है, बल्कि शोध की सहायता से यह पुराने ज्ञान के सत्यापन में भी उपयोगी है। शोध द्वारा साहित्य-समाज से सम्बन्धित तथ्यों का भी समय-समय पर पुनर्स्थापन किया जाता है जो हमें पहले से ही ज्ञात है। ऐसा करने से हमें यह ज्ञात होता है कि उन तथ्यों की वर्तमान स्थिति क्या है एवं पहले की तुलना में उसमें क्या परिवर्तन घटित हुए हैं। इसे यह सुनिश्चित करने में भी सहायता मिलती है कि वर्तमान आवश्यकताओं के संदर्भ में यह तथ्य कहाँ तक उपयोगी हैं अथवा उनके पक्ष में क्या परिवर्तन अपेक्षित है। 
(4) निष्पक्षता एवं विश्वसनीयता बनाने में सक्षम: एक शोध की सबसे बड़ी विशेषता होती है कि निष्पक्षता एवं विश्वसनीयता बनाए रखें ताकि शोध के माध्यम से सही निष्कर्ष तक पहुँचा जा सके। बिना निष्पक्ष हुए शोध के कार्य को सही अंजाम तक नहीं पहुँचाया जा सकता है। शोध में निष्पक्षता ही किसी शोध को और विश्वसनीय बनाता है। 
(5) आधुनिक एवं सर्वांगीण विकास करने में सक्षम: शोध काल्पनिक या सुनी-सुनाई बातों पर आधारित ना होकर ज्ञात किए जाने वाले तथ्यों पर आधारित होता है। शोध घटनाओं और तथ्यों के बीच पाए जाने वाले कार्य कारण सम्बन्धों का अध्ययन करता है। शोध के माध्यम से किसी विषय या घटना के उत्तरदायी कारणों और उनके परिणामों के विषय में तथ्यात्मक जानकारी मिलती है। शोध के माध्यम से ही नियमों का पता लगाया जाता है एवं सिद्धांतों का निर्माण भी किया जाता है। शोध नवीन पद्धतियों, प्रविधियों एवं अन्वेषण के लिए उपयुक्त उपकरणों के विकास कर मानव समाज को आधुनिक बनाने में सहयोग करता है। इसके माध्यम से आज विज्ञान के युग में खड़ा है। शोध ही मानव को उन बुलंदियों तक पहुँचा सकता है जिन बुलंदियों को पाने का स्वप्न मानव समाज कर रहा है।

निष्कर्ष: शोध एक औपचारिक प्रक्रिया है जिस का विषय से लेकर शोध की सामग्री भी नपी तुली होती है। शोध की दिशा भी निर्देशित होती है। इस कारण सृजित होने वाला ज्ञान भी बँधा होता है। शोध एक प्रक्रिया है जिसमें ज्ञान का वैश्वीकरण, सार्वभौमीकरण किया जाता है। शोध में प्रशासन तथा मार्गदर्शक शोधार्थी से अपेक्षा करता है कि वह यूनिवर्सल पैटर्न को फॉलो करें। अतः शोध उस प्रक्रिया अथवा कार्य का नाम है जिसमें बोधपूर्वक प्रयत्न से तथ्यों का संकलन कर सूक्ष्मग्राही एवं विवेचक बुद्धि से उसका अवलोकन-विश्‌लेषण करके नए तथ्यों या सिद्धांतों का उद्‌घाटन किया जाता है। 

मिथुन राम
पूर्व शोधार्थी, कलकत्ता विश्वविद्यालय, 
प्रशासनिक विभाग में कार्यरत, 
बाबा साहब अंबेडकर शिक्षा विश्वविद्यालय, कोलकाता
संपर्क-4/1 माथुर बाबू लेन कोलकाता-700015।, 
मोबाइल नंबर–7003654214, 
ई-मेल– mithunram906@gmail.com 

सहायक संदर्भ ग्रंथ सूची:

  1. शर्मा डॉ. विनयमोहन, शोध प्रविधि, नेशनल पब्लिशिंग हाउस, प्रथम संस्करण-1973, दिल्ली

  2. https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8

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