शिक्षक

मोहित त्रिपाठी  (अंक: 214, अक्टूबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

शिक्षक तुम मानवता के दीपक बन 
फैलाते हो इस जग में उजियारा 
अज्ञानता का तम नाश करके, 
पथ प्रशस्त करते हो हमारा। 
 
हे जन के शिक्षक राष्ट्र निर्माता 
नैतिक मूल्यों से सिंचित कर, 
देते शिष्यों के जीवन लता को 
तुम सुदृढ़, सशक्त सहारा। 
 
अनुशासन का पाठ पढ़ाते 
कर्तव्यों का बोध कराते 
हार के जिस क्षण मनोबल टूटे, 
तुम दे धैर्य सम्बल बन जाते। 
 
अनपढ़, निरक्षर को ज्ञानी बनाते 
शिक्षा के गरिमा की पहचान करा, 
जग में सम्मान का अधिकारी बनाते 
करें श्रेष्ठ कर्म जीवन में, ये वर चाहते। 
 
सहज सरल कर्मठ व्यक्तित्व से 
प्रेरित हम सबको करते हो, 
अनुचित कुछ कभी जो मन में आये 
उसको करने से हम डरते हों। 
 
सदाचार की सीख तुम्हारी 
कभी न भूले कभी न बिसरें, 
जटिल कठिन विपदाओं में 
तप कर सोने सा निखरें। 
 
हे जन के शिक्षक राष्ट्र निर्माता 
कच्ची मिट्टी से कोमल मन को, 
कुम्हार से गढ़ते व्यक्तित्व को
चरित्र में सद्गुण चन्दन लगाते हो। 
 
तेरे उपकार का पार कहाँ पाते हैं 
हम श्रद्धा से शीश झुकाते हैं, 
कर कमल चरण रज का पूजन 
तेरा वंदन, अभिनन्दन गाते हैं। 

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