मनोविकार
मोहित त्रिपाठीउठता जब शत्रु मनोविकार
फैल भयंकर दावानल-सा।
काम, क्रोध, लोभ, मोह से
संचित पुण्यों को झुलसा।
मन से उपजा वाणी में उतरा
करता दूषित आचार-विचार।
व्यक्तित्व, चरित्र पतन-कारक
करता जन-मानस को दो चार
उठता जब शत्रु मनोविकार।