शांति

अमर परमार

घर के बुज़ुर्ग की मौत हो चुकी है
वह जल चुका है मरघट में
घर पर रुदन चल रहा है
संबंधी-परिचित आ रहे हैं
रो रहे हैं, ढाँढस बँधा रहे हैं
कि होनी को कौन टाले?
बीड़ी फूँक रहे हैं, गुटखा थूक रहे हैं
भीतर औरतें रो रही हैं, मर्द आँगन में हैं
तमाम रस्में जारी हैं
मृत्युभोज के पत्र छप चुके हैं, बाँटे जा चुके हैं
आज मृत्युभोज है, लोग आ रहे हैं
खा रहे हैं, लौट रहे हैं
तेरह दिन ख़त्म
संतानों ने पंचायत बुला ली है
अब सही और आख़िरी फ़ैसला होकर रहेगा
देखते हैं कौन कितना ले पाता है,
ले जाता है
मृत की आत्मा को शांति मिले।

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