शब्द

नमिता सिंह ‘आराधना’ (अंक: 230, जून प्रथम, 2023 में प्रकाशित)


जग निःशब्द हो गया
शब्द जब मौन हुए
नयन से जब नयन मिले
शब्द फिर गौण हुए। 
 
नयन से जब नयन मिले
मूक संवाद हो गया
शब्द सारे निरर्थक थे
अहसास हमें हो गया। 
 
शब्दों की भीड़ में
शब्द शब्द अपूर्ण थे
शब्दों की धड़कनों में
भाव अर्थ पूर्ण थे। 
 
शब्द जब बोल उठे
वाद विवाद हो गए
शब्दों की गरिमा टूटी
शब्द अपशब्द हो गए। 
 
शब्द शब्द निःशब्द हुए
शब्दों का अकाल हुआ
साधना में लीन शब्द
शब्द ही त्रिकाल हुआ। 
 
शब्द का सौम्य रूप
शब्द महाकाल हुआ
पीकर अपमान का घूँट
शब्द फिर विकराल हुआ। 
 
लज्जा त्यागा शब्द ने
जग स्तब्ध हो गया
फ़िज़ाओं के संगीत से
प्रेम कहीं खो गया। 
 
शब्दों ने शृंगार किया
प्रेम ग्रंथ रच गया
शब्दों ने वसन उतारे
शब्द कलंक बन गया। 
 
रौद्र रूप शब्द ने धरा
प्रेम विश्वास खो गया
शीतल कोमल जब हुआ
शब्द गंगाजल हो गया। 

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