मानव- मन

15-02-2023

मानव- मन

नमिता सिंह ‘आराधना’ (अंक: 223, फरवरी द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

मानव- मन तू क्यूँ रोता है ?
क्यूँ धैर्य अपना खोता है?
 
सुख- दुख हैं जीवन के दो पहलू
इन दोनों में एक समझौता है ।
कभी दुख आगे और सुख पीछे
कभी सुख आगे और दुख पीछे
यही जीवन का खेला है ।
हर कोई यहाँ अकेला है ।
क्यूँ अश्कों में खुद को डुबोता है?
मानव- मन तू क्यूँ रोता है?
 
पाप -पुण्य और धर्म-कर्म
सब है दुनिया के मर्म।
यह दुनिया एक माया है
सुख-दुख एक छलावा है ।
दुख की बदली छँट जाएगी
ये कहाँ टिक पाएगी ?
तू चैन अपना क्यों लुटाता है?
मानव मन तू क्यों घबराता है?
 
साँसों में जब तक है रवानी।
जीवन की बस इतनी कहानी
तुम्हारे अधरों पर हो मुस्कान
तो होगी हर राह आसान।
दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास
दिलाएँगे तुम्हें नया आकाश।
क्यूँ न खुद पर भरोसा करता है?
मानव- मन तू क्यूँ डरता है?

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