क़फ़स की क़ैद
हेमंत कुमार मेहरापरिंदा एक क़फ़स में क़ैद है,
पर हैं, मगर कटे-कुतरे
सामने खुला आसमान,
तमन्ना उड़ के दूर जाने की,
उफ़क़ के पार निकल जाने की,
मगर मजबूरियाँ बेइंतहा है,
कभी-कभी खुलता है क़फ़स का दरवाज़ा
परिंदा फड़फड़ाता है,
मगर वो उड़ नहीं पाता,
खुली फ़ज़ा में थोड़ा मुस्कुरा ही लेता है,
मगर ये भूल जाता है,
क़फ़स उसका ठिकाना है,
जो थोड़ा मुस्कुराता है,
तो मालिक जाग जाता है,
ये खुला आसमान,
दिल अज़ीज़ फ़ज़ायें,
ये हसीं ख़्वाब,
और ये क़फ़स की दीवारें।